आज इस आर्टिकल में हम आपको हजारी प्रसाद द्विवेदी की जीवनी – Hazari Prasad Dwivedi Biography Hindi की जीवनी के बारे में बताने जा रहे है. हजारी प्रसाद द्विवेदी एक निबंधकार, उपन्यासकार, समीक्षक एवं आलोचक के रूप में प्रसिद्ध थे। आचार्य द्विवेदी जी को 1957 में उत्कृष्ट साहित्य लेखन के लिए पदम भूषण से भी सम्मानित किया गया था।
द्विवेदी जी के निबंधों के विषय भारतीय संस्कृति, इतिहास, ज्योतिष, साहित्य विविध धर्मों एवं संप्रदायों का विवेचन आदि है। वर्गीकरण की दृष्टि से हजारी प्रसाद द्विवेदी जी के निबंध दो भागों में विभाजित किए गए हैं – विचारात्मक और आलोचनात्मक। विचारात्मक निबंधों की दो श्रेणियां हैं। पहली श्रेणी के निबंधों में दार्शनिक तत्वों की प्रधानता रहती है। द्वितीय श्रेणी के निबंध सामाजिक जीवन संबंधी होते हैं। आलोचनात्मक निबंध भी दो श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं। पहली श्रेणी में ऐसे निबंध हैं जिनमें साहित्य के कई अंगों का शास्त्रीय दृष्टि से विवेचन किया गया है और द्वितीय श्रेणी में वे निबंध आते हैं जिनमें साहित्यकारों की कृतियों पर आलोचनात्मक दृष्टि से विचार- विमर्श किया गया है। द्विवेदी जी के इन निबंधों में विचारों की गहनता, निरीक्षण की नवीनता और विश्लेषण की सूक्ष्मता रहती है।
हिंदी के अलावा, वे संस्कृत, बंगाली, पंजाबी, गुजराती, पाली, प्राकृत, और अपभ्रंश सहित कई भाषाओं के जानकार थे। मध्ययुगीन संत कबीर के विचारों, कार्य और साखियों पर उनका शोध एक उत्कृष्ट कार्य माना जाता है। उनके ऐतिहासिक उपन्यास बाणभट्ट की आत्मकथा (1946), अनामदास का पोथा, पुनर्नवा, चारु चन्द्र लेखा को क्लासिक्स माना जाता है. उनके यादगार निबंध नाखून क्यों बढते हैं, अशोक के फूल, कुटज, और आलोक पर्व आदि हैं। तो आइए आज इस आर्टिकल में हम आपको हजारी प्रसाद द्विवेदी की जीवनी – Hazari Prasad Dwivedi Biography Hindi के बारे में बताएंगे ।
हजारी प्रसाद द्विवेदी की जीवनी – Hazari Prasad Dwivedi Biography Hindi
जन्म
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म 19 अगस्त 1907 को प्रदेश के बलिया जिले के ‘आरत दुबे का छपरा’ नामक गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम पंडित अनमोल द्विवेदी था जो कि संस्कृत के प्रकांड पंडित थे। द्विवेदी जी का परिवार ज्योतिष विद्या के लिए प्रसिद्ध था। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का व्यक्तित्व बड़ा प्रभावशाली और उनका स्वभाव बड़ा सरल और उदार था।
शिक्षा
हजारी प्रसाद द्विवेदी की प्रारंभिक शिक्षा गांव के स्कूल में ही हुई। उन्होंने संस्कृत महाविद्यालय काशी से शास्त्री की परीक्षा पास की तथा बाद में 1930 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय में ज्योतिष आचार्य की उपाधि प्राप्त की। सारे हजारी प्रसाद द्विवेदी हिंदी अंग्रेजी संस्कृत भाषाओं के भी विद्वान थे। शिक्षा प्राप्ति के बाद द्विवेदी जी शांति निकेतन चले गए और कई सालों तक वहां हिंदी विभाग में कार्य करते रहे। शांति-निकेतन में रवींद्रनाथ ठाकुर तथा आचार्य क्षितिमोहन सेन के प्रभाव से साहित्य का गहन अध्ययन और उसकी रचना प्रारंभ की।
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी हिंदी, अंग्रेज़ी, संस्कृत और बांग्ला भाषाओं के विद्वान थे। भक्तिकालीन साहित्य का भी उन्हें अच्छा ज्ञान प्राप्त था। हिन्दी साहित्य के ऐतिहासिक रूपरेखा पर ऐतिहासिक अनुसंधानात्मक कई संग्रह लिखे.
हिंदी के अलावा, वे संस्कृत, बंगाली, पंजाबी, गुजराती, पाली, प्राकृत, और अपभ्रंश सहित कई भाषाओं के जानकार थे। मध्ययुगीन संत कबीर के विचारों, कार्य और साखियों पर उनका शोध एक उत्कृष्ट कार्य माना जाता है। उनके ऐतिहासिक उपन्यास बाणभट्ट की आत्मकथा (1946), अनामदास का पोथा, पुनर्नवा, चारु चन्द्र लेखा को क्लासिक्स माना जाता है. उनके यादगार निबंध नाखून क्यों बढते हैं अशोक के फूल, कुटज, और आलोक पर्व (संग्रह) आदि हैं.
एक ओर पारंपरिक भाषाओँ संस्कृत, पाली और प्राकृत, और दूसरी तरफ आधुनिक भारतीय भाषाओं के की जानकारी रखने वाले द्विवेदी जी ने अतीत और वर्तमान के बीच एक बाँध की तरह काम किया। संस्कृत के शास्त्रों के गहन ज्ञाता द्विवेदी जी ने साहित्य – शास्त्र के साथ ही साथ भारतीय साहित्य के शाब्दिक परंपरा का विशद विवेचन किया है। वे इसके एक महान कमेंटेटर के रूप में जाने जाते हैं.
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करियर
1940 में शांतिनिकेतन में हिंदी अध्यापक नियुक्त हुए और इसके बाद में वहां के हिंदी भवन के निदेशक बने। 1949 में लखनऊ विश्वविद्यालय द्वारा उन्हें कबीरदास पर गहन अध्ययन करने के लिए पी.एच.डी. की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया। 1950 में वे काशी हिंदू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के प्रोफेसर एवं अध्यक्ष नियुक्त किए गए। पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ के प्रोफेसर नियुक्त हुए आजीवन अनेक शैक्षिक और साहित्य की योजनाओं के से जुड़े रहे।
रचनाएं
हजारी प्रसाद द्विवेदी जी की पहचान एक निबंधकार उपन्यासकार समीक्षा के आलोचक के रूप में है। इन विधाओं में उन्होंने प्रमुख ग्रंथों की रचना की है उनके नाम इस प्रकार है।
निबंध संग्रह-
- अशोक के फूल
- कल्पलता
- विचार और वितर्क
- कुटज
- आलोक पर्व
- प्राचीन भारत के कलात्मक विनोद
उपन्यास
- बाणभट्ट की आत्मकथा
- चारुचंद्र लेख
- पुनर्नवा
- अनामदास का पोथा
आलोचना साहित्य इतिहास
- सूर साहित्य
- कबीर
- मध्यकालीन बोध का स्वरूप
- नाथ संप्रदाय
- कालिदास की लालित्य योजना
- हिंदी साहित्य का आदिकाल
- हिंदी साहित्य की भूमिका
- हिंदी साहित्य उद्भव और विकास
ग्रंथ संपादन-
- संदेश रासक
- पृथ्वीराज रासो
- नाथ सिद्धों की बानिया
पत्रिका संपादक
- विश्व भारती (शांतिनिकेतन)
हजारी प्रसाद द्विवेदी की कहानियाँ
- आम फिर बौरा गए ,
- शिरीष के फूल,
- भगवान महाकाल का कुंथानृत्य,
- महात्मा के महा परायण के बाद,
- ठाकुर जी की वटूर,
- संस्कृतियों का संगम,
- समालोचक की डाक,
- माहिलों की लिखी कहानियाँ,
- केतु दर्शन,
- ब्रह्मांड का विस्तार,
- वाह चला गया ,
- साहित्यिक संस्थाएं क्या कर सकती है,
- हम क्या करें,
- मुनष्य की सर्वात्तम कृति: साहित्य,आन्तरिक सुनिश्चिता भी आवश्यक है,
- समस्याओं का सबसे बड़ा हल,
- साहित्य का नया कदम,
- आदिकाल के अन्तर्प्रान्तीय साहित्य का ऐतिहासिक महत्व
साहित्य की विशेषताएं
आचार्य द्विवेदी जी ने साहित्य की अनेक विधाओं में उच्च कोटि की रचनाएं लिखी । उनके निबंधों में सरसता, गंभीरता, विनोदप्रियता तथा विद्वता के अद्भुत समन्वय के दर्शन होते हैं। ललित निबंध के क्षेत्र में ये बेजोड़ है। उन्होंने जहां एक और भारतीय संस्कृति के उज्जवल पक्ष पर प्रकाश डाला है वहीं दूसरी और मानवतावाद का प्रतिपादन भी किया है उनके निबंधों में मानवतावाद तथा लोक संग्रह की भावना गांधीवादी दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति प्राचीनता एवं नवीनता का सामंजस्य, विचारात्मकता एवं गंभीरता विशेषताएं देखी जा सकती है। रचनात्मक ग्रंथों द्वारा सूरदास व कबीर दास के साहित्य को एक नया आयाम प्रदान किया है तथा उन्हें भक्ति के साहित्य के पठन तथा शोध का विषय बनाया उन्होंने साहित्य इतिहास लेखन द्वारा रामचंद्र शुक्ल की कुछ बातों का विरोध बड़े सशक्त एवं प्रभावशाली तरीके से किया है। उन्होंने अपने उपन्यास के माध्यम से इतिहास को पुनर्जीवित करने का भी सफल प्रयोग किया है।
भाषा शैली
हजारी प्रसाद द्विवेदी जी की भाषा आम बोलचाल की साहित्य खड़ी बोली है, जिसमे तत्सम, तद्भव शब्दों की प्रधानता के साथ उर्दू फारसी भाषा की प्रचुरता है। ये हालांकि संस्कृतनिष्ठ साहित्यक हिंदी भाषा के बड़े कायल थे लेकिन उन्होंने कहीं पर भी पांडित्य प्रदर्शन नहीं किया। ये प्राय: सरल, सहज व सुबोध शब्दावली का ही प्रयोग करते थे। ये छोटे बड़े सरल, सहज और काव्यात्मक अभिव्यक्ति वाले वाक्यों में गंभीर बात बात कहने में सिद्धहस्त है। ललित निबंधों उनकी भाषा बड़ी मधुर तथा प्रवाहमय दिखाई देती है। उनकी भाषा में प्रसाद गुण सर्वत्र विद्यमान है। उन्होंने विचारात्मक, भावनात्मक, आत्मकथात्म, तथा व्यंगात्मक शैलियों का अधिक प्रयोग किया है। उन्होंने अपने साहित्य में यथा स्थान लोकोक्तियों, मुहावरों एवं सूक्तियों का प्रयोग भी किया है। उनकी भाषा विषयानुकूल, पत्रानुकूल तथा परिवेशगत अनुकूलता से ओत-प्रोत है।
पुरस्कार एवं सम्मान
- सोवियत लैंड पुरस्कार – आलोक पर्व पर
- 1957 ई० पदम भूषण – उत्कृष्ट साहित्य लेखन के लिए
- लखनऊ विश्वविद्यालय ने उन्हें डी.लिट. की उपाधि देकर सम्मानित किया था।
मृत्यु
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी की मृत्यु 19 मई, 1979 को हुई थी।