मौलाना मोहम्मद अली जो स्वतंत्रता सेनानी थे मौलाना मोहम्मद अली ने साप्ताहिक समाचार पत्र निकाला जिसका नाम कामरेड था। मौलाना जौहर पत्रकारिता के सिद्धांतों के पक्षधर थे। तो आज हम आपको इस आर्टिकल में मौलाना मोहम्मद अली जौहर की जीवनी – Mohammad Ali Jauhar Biography Hindiके बारे में बताने जा रहे हैं.
मौलाना मोहम्मद अली जौहर की जीवनी – Mohammad Ali Jauhar Biography Hindi
जन्म
मौलाना मोहम्मद अली का जन्म 10 दिसंबर ,1878 में रामपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ था। वे रूहेला जनजाति के पठान थे। मौलाना मोहम्मद अली के पिता का नाम अब्दुल अली खान था और उनकी माता का नाम आबादी बानो बेगम था। जब मौलाना मोहम्मद अली 5 वर्ष के थे तो उनके पिता की मृत्यु हो गई थी उनके पिता की मृत्यु के बाद सारी जिम्मेदारी उनके माता को निभानी पड़ी। उनकी माता ने ही उनका पालन पोषण किया. मौलाना मोहम्मद अली के भाई का नाम मौलाना शौकत अली था। मौलाना साहब का पूरा नाम मौलाना मोहम्मद अली जौहर था।
शिक्षा
अपने पिता की मृत्यु के बाद विवाद के अनुसार उर्दू और फारसी की प्रारंभिक शिक्षा उन्हें घर से ही प्राप्त हुई। बाद में उन्हें हाई स्कूल की पढ़ाई के लिए बरेली भेज दिया गया और वहां से उन्हें उन्होंने हाई स्कूल की परीक्षा पास की आगे की पढ़ाई के लिए वे अलीगढ़ गए और वहां पर उन्होंने बीए की परीक्षा पास की मौलाना मोहम्मद अली के बड़े भाई शौकत अली की तमन्ना थी कि मौलाना जौहर आईसीएस (इंडियन सिविल सर्विसेज) की परीक्षा पास करें,इसके लिए उन्हें ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में भेजा गया लेकिन वहां पर मौलाना मोहम्मद अली सफल नहीं हो पाए।
कार्य
मौलाना मोहम्मद अली लंदन से लौटने के बाद रामपुर राज्य में मुख्य शिक्षा अधिकारी के रूप में कार्य शुरू किया, उन्होंने वहां पर बड़ौदा राज्य में भी नौकरी की। उन्होंने कोलकाता में 1911 में ‘कामरेड’ नाम का एक साप्ताहिक अखबार निकाला और 1912 में वे दिल्ली आ गए इसके बाद में मोहम्मद अली ने सन 1913 में अपना दूसरा अखबार ‘हमदर्द’ नाम से शुरू किया। उस समय अंग्रेजी अखबार ‘कामरेड’ और उर्दू दैनिक ‘हमदर्द’ अखबार अपने समय के मशहूर अखबार माने जाते थे।
आंदोलन
मोहम्मद अली मुस्लिमों की तरफ से ब्रिटिश नीतियों के एक पृथक आलोचक थे। मोहम्मद अली ने खिलाफत आंदोलन का समर्थन किया और उन्होने खिलाफत आंदोलन में अपनी अहम भूमिका निभाई। मौलाना साहब को 1915 में गिरफ्तार करके 4 वर्ष के लिए जेल भेज दिया गया था। एक नए नेशनल” मुस्लिम यूनिवर्सिटी” की स्थापना की जो “जामिया मिलिया इस्लामिया” के रूप में जाने गई। इन्होंने 1986 में ढाका में हुई अखिल भारतीय मुस्लिम लीग की बैठक मैं भाग लिया। 1918 में इसके अध्यक्ष बने। खिलाफत आंदोलन के दौरान वे खिलाफ समिति के अध्यक्ष चुने गए, तथा 1919 ई. में इस आंदोलन के क्रम में इंग्लैंड तथा मुस्लिम नेताओं के दल का प्रतिनिधित्व किया।
1923 ई. में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। उन्होंने नेहरू रिपोर्ट का विरोध किया तथा 1931 में संपन्न गोलमेज सम्मेलन में मुस्लिम लीग की प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया।
निधन
4 फरवरी,1931 ई. को लंदन में गोलमेज सम्मेलन के तुरंत बाद उनका निधन हो गया तथा उनकी इच्छा के अनुसार उन्हें जेरूसलम में दफनाया गया।