आज इस आर्टिकल में हम आपको संत रविदास (रैदास) की जीवनी – Sant Ravidas (Raidas) Biography Hindi के बारे में बताएगे।
संत रविदास (रैदास) की जीवनी – Sant Ravidas (Raidas) Biography Hindi
Sant Ravidas को कबीर दास का समान रूप में कहा जाता है।
मध्य युग के संतों में रैदास का भी एक महत्वपूर्ण स्थान है
यह चर्मकार जाति का होना सिद्ध करते हैं
इनके एक दोहे में कहा गया है कि ‘नीचे से प्रभु आँच कियो है कह रैदास चमारा’
जन्म
संत रविदास जी का जन्म काशी,उत्तर प्रदेश में लगभग 1398 ई. में हुआ था।
संत रैदास को संत रविदास, रामदास, गुरु रविदास और संत रविदास के नाम से भी जाना जाता है
उनके पिता का नाम संतोख़ दास(रग्घू) और माता का नाम कलसा देवी बताया जाता है।
रैदास जी ने साधु संतो के सतसंग से प्राप्त ज्ञान प्राप्त किया था।
लेकिन उनके पिता जूते बनाने का काम करते थे और उन्होंने इसे भी सहर्ष स्वीकारा और वे अपना काम करते समय पूरी लगन और पूरी ध्यान से करते थे।
प्रारंभ से ही रविदास जी बहुत ही व्यवहारी और दयालु थे, और वे दूसरों की सहायता करने में कोई कमी नहीं छोड़ते थे। साधु संतों की सहायता करने में उन्हें विशेष आनंद मिलता था वह उन्हें हमेशा बिना पैसे लिए ही जूते भेंट में दिया करते थे।
उनके इस स्वभाव के कारण उनके माता-पिता उनसे हमेशा नाराज रहते थे।
रैदास जी के स्वभाव के कारण उनके माता -पिता ने उन्हें और उनकी पत्नी को घर से निकाल दिया था।
संत रवि दास जी ने पड़ोस में ही अपने लिए एक मकान बनाया और तत्परता से अपने व्यवसाय का काम करने लगे, और अपना बाकी बचा हुआ समय ईश्वर-भजनों और साधु-संतों के सत्संग में व्यतीत करने लगे थे।
रैदास जी के समय के पालन की प्रवृत्ति तथा उनके मधुर व्यवहार के कारण उनके संपर्क में आने वाले सभी व्यक्ति उनसे प्रसन्न रहते थे।
शिक्षा
संत रैदास जी केशिक्षक का नाम रामानंद जी था जोकि काशी के एक बहुत ही महान व्यक्ति हुआ करते थे।
संत रैदास जी उनके शिष्य-मंडली के एक प्रमुख सदस्य हुआ करते थे।
कहां जाता है कि वे अनपढ़ थे किंतु ‘संत साहित्य के ग्रंथ’ और’ गुरु ग्रंथ साहिब’ में इनके पद पाए जाते हैं।
संत रैदास जी के जीवन की घटनाओं से समय तथा वचन के पालन संबंधी उनके गुणों का ज्ञान मिलता है।
एक बार एक पर्व के अवसर पर उनके पड़ोस के लोग ‘गंगा स्नान’ के लिए जा रहे थे।
संत रैदास जी के शिष्यों में से 1 ने उनसे चलने का आग्रह किया तो वे बोले की,” गंगा स्नान के लिए मैं अवश्य चलता किंतु एक व्यक्ति को मैंने आज ही जूते बनाकर देने का वचन दिया है और यदि आज मैं जूते नहीं दे सका तो मेरा वचन भंग हो जाएगा।
गंगा स्नान के लिए जाने पर मन यहाँ लगा रहेगा तो मुझे पूण्य कैसे प्राप्त होगा? मन जिस काम को करने के लिए पूरी तरह से तैयार हो वही काम करना उचित है। मन सही है, तो इस कटौती के जल में ही गंगा स्नान का पुण्य प्राप्त हो सकता है।
” उनके इस प्रकार के व्यवहार के बाद ही एक कहावत प्रचलित हुई थी कि – ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा।’
संत रैदास जी के द्वारा की गई रचनाएं
संत रैदास को अनपढ़ कहा जाता है। मत के विभिन्न संग्रहालयो में उनकी रचनाएं संकलित मिलती है।
स्थान में हस्तलिखित ग्रंथ के रूप में उनकी रचनाएं मिलती है।
दास की रचनाओं का एक संग्रह ‘बेलवेडियर प्रेस ‘प्रयाग से प्रकाशित हो चुका है इसके अतिरिक्त इन के बहुत से पद ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ में भी संकलित मिलते हैं।
लेकिन दोनों प्रकार के पदों की भाषा में बहुत अंतर है परंतु प्राचीनता के कारण गुरु ग्रंथ साहिब में संग्रहित पदों को प्रमाणिक मानने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए।
रैदास के कुछ पदों में अरबी और फारसी भाषा का प्रभाव भी प्रतीत होता है।
रैदास जी ने ऊंच-नीच की भावना और ईश्वर भक्ति के नाम पर किए जाने वाले विवादों को स्थानीय और निरर्थक बताया और सब से परस्पर मिलकर प्रेम पूर्वक रहने का उपदेश दिया।रैदास जी स्वयं मधुर तथा भक्ति पूर्ण की रचना करते थे और उन्हें भाव विभोर विभोर होकर सुनाते थे।
संत रविदास का मानना था कि राम, कृष्ण, करीम, राघव एक ही परमेश्वर के अनेक नाम हैं।
वेद, पुराण, कुरान आदि ग्रंथों में एक ही भगवान का गुणगान या गया।
रैदास जी का विश्वास था कि ईश्वर की भक्ति के लिए सदाचार, परहित- भावना का पालन करना अत्यंत आवश्यक है।
संत रविदास ने अभिमान को त्याग कर दूसरों के साथ व्यवहार करने और विनम्रता तथा शिक्षक के गुणों का विकास करने पर बल दिया उन्होंने अपने एक बयान में कहा है कि-
‘रैदास तेरी भगति दूरि है, भाग सो पावै।
तजि अभिमान मेटिआपा पर, पिपिलक हवै चुनि खावै। ‘
रैदास जी ने एक पंथ में चलाया था, जिसका नाम ‘रैदासी पंथ’ रखा गया।
एक पंथ के अनुयाई गुजरात, पंजाब, उत्तर प्रदेश आदि क्षेत्रों में भी पाए जाते है।
निधन – संत रविदास (रैदास) की जीवनी
संत रविदास का निधन 1518 ई. में हुआ था ।
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