आज इस आर्टिकल में हम आपको रवीन्द्र नाथ टैगोर की जीवनी – Ravindranath Tagore Biography Hindi के बारे में बताएगे।
रवीन्द्र नाथ टैगोर की जीवनी – Ravindranath Tagore Biography Hindi
रवीन्द्र नाथ टैगोर एक बांग्ला कवि, कहानीकार, गीतकार, संगीतकार, नाटककार, निबंधकार और चित्रकार थे।
भारतीय संस्कृति के सर्वश्रेष्ठ रूप से पश्चिमी देशों का परिचय और पश्चिमी देशों की संस्कृति से भारत का परिचय कराने में टैगोर की बड़ी भूमिका रही तथा आमतौर पर उन्हें आधुनिक भारत का असाधारण सृजनशील कलाकार माना जाता है।
टैगोर के गीतांजलि (1910) समेत बांग्ला काव्य संग्रहालयों से ली गई कविताओं के अंग्रेज़ी गद्यानुवाद की इस पुस्तक की डब्ल्यू.बी.यीट्स और आंद्रे जीद ने प्रशंसा की और इसके लिए टैगोर को 1913 में नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया।
वे एक मात्र ऐसे भारतीय साहित्यकार थे जिन्हें नोबेल पुरस्कार मिला था।
वह नोबेल पुरस्कार पाने वाले प्रथम एशियाई और साहित्य में नोबेल पाने वाले पहले गैर यूरोपीय भी थे।
जन्म
रवीन्द्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई 1861 को कोलकाता के जोड़ासाँको ठाकुरबाड़ी में हुआ था।
उनके पिता का नाम देवेन्द्रनाथ टैगोर और उनकी माता का नाम शारदा देवी था।
रवीन्द्रनाथ टैगोर को रबीन्द्रनाथ ठाकुर और गुरुदेव के नाम से भी जाना जाता है।
वह अपने माँ-बाप की तेरह जीवित संतानों में सबसे छोटे थे।
जब वे छोटे थे तभी उनकी माँ का देहांत हो गया और चूँकि उनके पिता अक्सर यात्रा पर ही रहते थे इसलिए उनका लालन-पालन नौकरों-चाकरों द्वारा ही किया गया। उनके सबसे बड़े भाई द्विजेन्द्रनाथ एक दार्शनिक और कवि थे।
उनके एक दूसरे भाई सत्येन्द्रनाथ टैगोर इंडियन सिविल सेवा में शामिल होने वाले पहले भारतीय थे। उनके एक और भाई ज्योतिन्द्रनाथ संगीतकार और नाटककार थे। उनकी बहन स्वर्नकुमारी देवी एक कवयित्री और उपन्यासकार थीं।
1883 में उनका विवाह मृणालिनी देवी से हुआ।
शिक्षा – रवीन्द्र नाथ टैगोर की जीवनी
रबीन्द्रनाथ टैगोर की स्कूल की पढ़ाई प्रतिष्ठित सेंट ज़ेवियर स्कूल से प्राप्त की ।
टैगोर ने बैरिस्टर बनने की चाहत में 1878 में इंग्लैंड के ब्रिजटोन पब्लिक स्कूल में नाम दर्ज कराया।
उन्होंने लंदन कॉलेज विश्वविद्यालय में लॉ की फड़ाई की।
लेकिन 1880 में बिना डिग्री हासिल किए ही वापस आ गए।
रबीन्द्रनाथ टैगोर को बचपन से ही कविताएँ और कहानियाँ लिखने का शौक़ था।
उनके पिता देवेन्द्रनाथ ठाकुर एक जाने-माने समाज सुधारक थे।
वे चाहते थे कि रबीन्द्र बडे होकर बैरिस्टर बनें। इसलिए उन्होंने रबीन्द्र को क़ानून की पढ़ाई के लिए लंदन भेजा।
लेकिन रबीन्द्र का मन साहित्य में ही रमता था।
उन्हें अपने मन के भावों को काग़ज़ पर उतारना पसंद था।
आख़िरकार, उनके पिता ने पढ़ाई के बीच में ही उन्हें वापस भारत बुला लिया और उन पर घर-परिवार की ज़िम्मेदारियाँ डाल दीं। रबीन्द्रनाथ टैगोर को प्रकृति से बहुत प्यार था।
वे गुरुदेव के नाम से लोकप्रिय थे।
भारत आकर गुरुदेव ने फिर से लिखने का काम शुरू किया।
करियर
इंग्लैंड से वापस आने और अपनी शादी के बाद से लेकर सन 1901 तक का अधिकांश समय रविंद्रनाथ ने सिआल्दा (अब बांग्लादेश में) स्थित अपने परिवार की जागीर में बिताया।
वर्ष 1898 में उनके बच्चे और पत्नी भी उनके साथ यहाँ रहने लगे थे। उन्होंने दूर तक फैले अपने जागीर में बहुत भ्रमण किया और ग्रामीण और गरीब लोगों के जीवन को बहुत करीबी से देखा।
वर्ष 1891 से लेकर 1895 तक उन्होंने ग्रामीण बंगाल के पृष्ठभूमि पर आधारित कई लघु कथाएँ लिखीं।
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वर्ष 1901 में रविंद्रनाथ शान्तिनिकेतन चले गए। वह यहाँ एक आश्रम स्थापित करना चाहते थे।
यहाँ पर उन्होंने एक स्कूल, पुस्तकालय और पूजा स्थल का निर्माण किया। उन्होंने यहाँ पर बहुत सारे पेड़ लगाये और एक सुन्दर बगीचा भी बनाया। यहीं पर उनकी पत्नी और दो बच्चों की मौत भी हुई। उनके पिता भी सन 1905 में चल बसे। इस समय तक उनको अपनी विरासत से मिली संपत्ति से मासिक आमदनी भी होने लगी थी।
कुछ आमदनी उनके साहित्य की रॉयल्टी से भी होने लगी थी।
14 नवम्बर 1913 को रविंद्रनाथ टैगोर को साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला।
नोबेल पुरस्कार देने वाली संस्था स्वीडिश अकैडमी ने उनके कुछ कार्यों के अनुवाद और ‘गीतांजलि’ के आधार पर उन्हें ये पुरस्कार देने का निर्णय लिया था। अंग्रेजी सरकार ने उन्हें वर्ष 1915 में नाइटहुड प्रदान किया जिसे रविंद्रनाथ ने 1919 के जलिआंवाला बाग़ हत्याकांड के बाद छोड़ दिया।
सन 1921 में उन्होंने कृषि अर्थशाष्त्री लियोनार्ड एमहर्स्ट के साथ मिलकर उन्होंने अपने आश्रम के पास ही ‘ग्रामीण पुनर्निर्माण संस्थान’ की स्थापना की। बाद में इसका नाम बदलकर श्रीनिकेतन कर दिया गया।
साहित्य
अधिकतर लोग उनको एक कवि के रूप में ही जानते हैं परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं था। कविताओं के साथ-साथ उन्होंने उपन्यास, लेख, लघु कहानियां, यात्रा-वृत्तांत, ड्रामा और हजारों गीत भी लिखे।
संगीत और कला – रवीन्द्र नाथ टैगोर की जीवनी
एक महान कवि और साहित्यकार के साथ-साथ गुरु रविंद्रनाथ टैगोर एक उत्कृष्ट संगीतकार और पेंटर भी थे। उन्होंने लगभग 2230 गीत लिखे – इन गीतों को रविन्द्र संगीत कहा जाता है। यह बंगाली संस्कृति का अभिन्न अंग है।
भारत और बांग्लादेश के राष्ट्रगीत, जो रविंद्रनाथ टैगोर द्वारा लिखे गए थे, भी इसी रविन्द्र संगीत का हिस्सा हैं।
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लगभग 60 साल की उम्र में रविंद्रनाथ टैगोर ने ड्राइंग और चित्रकला में रूचि दिखाना प्रारंभ किया। उन्होंने अपनी कला में विभिन्न देशों के शैली को समाहित किया।
रचनाएँ – रवीन्द्र नाथ टैगोर की जीवनी
उनकी रचनायों में, उपन्यास: गोरा, घरे बाइरे, चोखेर बाली, नष्टनीड़, योगायोग; कहानी संग्रह: गल्पगुच्छ; संस्मरण: जीवनस्मृति, छेलेबेला, रूस के पत्र; कविता : गीतांजलि, सोनार तरी, भानुसिंह ठाकुरेर पदावली, मानसी, गीतिमाल्य, वलाका; नाटक: रक्तकरवी, विसर्जन, डाकघर, राजा, वाल्मीकि प्रतिभा, अचलायतन, मुक्तधारा, शामिल हैं। वह पहले ग़ैर-यूरोपीय थे जिनको 1913 में साहित्य के लिए नोबल पुरस्कार दिया गया।
वे एकमात्र कवि हैं जिनकी दो रचनाएँ दो देशों का राष्ट्रगान बनीं – भारत का राष्ट्र-गान ‘जन गण मन’ और बाँग्लादेश का राष्ट्रीय गान ‘आमार सोनार बाँग्ला’ उनकी ही रचनाएँ हैं।
प्रसिद्ध पुस्तकें
Gitanjali – 1910 | Kabuliwala | Shesher Kabita -1929 | Ghar Aur Bahar – 1916 |
Gora – 1910 | Chokher Bali – 1903 | The Post Office -1912 | Stray Birds -1916 |
The Gardener -1913 | Nastanirh -1901 | The Religion of Man – 1931 | My boyhood days |
Yogayog – 1929 | Hungry Stones – 1923 | Creative Unity – 1922 | Best of Tagore: 12 Short Stories |
My Reminiscences – 1912 | The Essential Tagore – 2011 | The cycle of spring – 1917 | Fruit Gathering – 1916 |
The golden boat – 1894 | Galpaguchchha – 1939 | Short Stories | Chaturanga – 1916 |
Nationalism – 1917 | Noukadubi – 1906 | Glimpses of Bengal – 1921 | Jete Nahi Dibo |
Red Oleanders | The spirit of Japan – 1916 | Vocation – 1909 | Aednik -1923 |
Sahaj Path | Chandalika | Raktakarabi – 1925 | Clouds and Waves |
Chitrangada | Janmadine – 1941 | Malini – 2012 | Le jardinier d’amour |
- Works of Rabindranath Tagore
- Sadhana, The Realisation of Life – 1913
- Gitanjali (song Offerings): A Collection of Prose Translations – 1910
- Selected Stories of Rabindranath Tagore – 2004
- The Heart of God: Prayers of Rabindranath Tagore
- The Hungry Stones and Other Stories – 1916
- Collected poems and plays of Rabindranath Tagore – 1936
- The English writings of Rabindranath Tagore – 1994
- Once There Was a King: Masterpiece Collection
- Rabindranath Tagore : Achalayatan
- Japan Jatri ( Bengali Edition ) – 2018
रवीन्द्रनाथ टैगोर के विचार
- हर एक कठिनाई जिससे आप मुंह मोड़ लेते हैं,एक भूत बन कर आपकी नीद में बाधा डालेगी.
- हर बच्चा इसी सन्देश के साथ आता है कि भगवान अभी तक मनुष्यों से हतोत्साहित नहीं हुआ है.
- जो कुछ हमारा है वो हम तक आता है ; यदि हम उसे ग्रहण करने की क्षमता रखते हैं.
- तथ्य कई हैं पर सत्य एक है.
- पृथ्वी द्वारा स्वर्ग से बोलने का अथक प्रयास हैं ये पेड़.
- हम महानता के सबसे करीब तब होते हैं जब हम विनम्रता में महान होते हैं. See More – रवीन्द्रनाथ टैगोर के के विचार – Ravindranath Tagore Anmol Vachan
राजनैतिक विचार
उनके राजनैतिक विचार बहुत जटिल थे। उन्होंने यूरोप के उपनिवेशवाद की आलोचना की और भारतीय राष्ट्रवाद का समर्थन किया। इसके साथ-साथ उन्होंने स्वदेशी आन्दोलन की आलोचना की और कहा कि हमें आम जनता के बौधिक विकास पर ध्यान देना चाहिए – इस प्रकार हम स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं।
भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के समर्थन में उन्होंने कई गीत लिखे। सन 1919 के जलियांवाला बाग़ नरसिंहार के बाद उन्होंने अंग्रेजों द्वारा दी गयी नाइटहुड का त्याग कर दिया। गाँधी और अमबेडकर के मध्य ‘अछूतों के लिए पृथक निर्वाचक मंडल’ मुद्दे पर हुए मतभेद को सुलझाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही।
यात्रायें
सन 1878 से लेकर सन 1932 तक उन्होंने 30 देशों की यात्रा की। उनकी यात्राओं का मुख्य मकसद अपनी साहित्यिक रचनाओं को उन लोगों तक पहुँचाना था जो बंगाली भाषा नहीं समझते थे। प्रसिद्ध अंग्रेजी कवि विलियम बटलर यीट्स ने गीतांजलि के अंग्रेजी अनुवाद का प्रस्तावना लिखा। उनकी अंतिम विदेश यात्रा सन 1932 में सीलोन (अब श्रीलंका) की थी।
पुरस्कार – रवीन्द्र नाथ टैगोर की जीवनी
टैगोर के गीतांजलि (1910) समेत बांग्ला काव्य संग्रहालयों से ली गई कविताओं के अंग्रेज़ी गद्यानुवाद की इस पुस्तक की डब्ल्यू.बी.यीट्स और आंद्रे जीद ने प्रशंसा की और इसके लिए टैगोर को 1913 में नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया।
मृत्यु – रवीन्द्र नाथ टैगोर की जीवनी
रवीन्द्र नाथ टैगोर ने अपने जीवन के आखिरी 4 साल पीड़ा और बीमारी में बिताये।
1937 के अंत में वो अचेत हो गए और बहुत समय तक इसी अवस्था में रहे। लगभग तीन साल बाद एक बार फिर ऐसा ही हुआ।
इस दौरान वह जब कभी भी ठीक होते तो कवितायें लिखते।
इस दौरान लिखी गयीं कविताएं उनकी बेहतरीन कविताओं में से एक हैं।
लम्बी बीमारी के बाद 7 अगस्त 1941 को कलकता में उनका देहांत हो गया।
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