भीष्म साहनी की जीवनी – Bhisham Sahni Biography Hindi

आज इस आर्टिकल में हम आपको भीष्म साहनी की जीवनी – Bhisham Sahni Biography Hindi के बारे में बताएगे।

भीष्म साहनी की जीवनी – Bhisham Sahni Biography Hindi

भीष्म साहनी की जीवनी
भीष्म साहनी की जीवनी

(English – Bhisham Sahni) भीष्म साहनी एक हिंदी लेखक, अभिनेता, शिक्षक, अनुवादक और बहुभाषी थे।

उन्हें हिन्दी साहित्य में मुंशी प्रेमचंद की परंपरा का अग्रणी लेखक माना जाता है।

भीष्म साहनी ने कई प्रसिद्ध रचनाएँ की थीं, जिनमें से उनके उपन्यास ‘तमस’ पर वर्ष 1986 में एक फ़िल्म का निर्माण भी किया गया था।

1998 में भारत सरकार ने उन्हे ‘पद्म भूषण’ से नवाजा।

संक्षिप्त विवरण

 

नाम   भीष्म साहनी
पूरा नाम, वास्तविक नाम
  भीष्म साहनी
जन्म 8 अगस्त 1915
जन्म स्थान रावलपिण्डी, भारत
पिता का नाम  हरबंस लाल साहनी
माता का नाम लक्ष्मी देवी
राष्ट्रीयता भारतीय
धर्म हिन्दू
जाति

जन्म

Bhisham Sahni का जन्म 8 अगस्त 1915 को भारत के रावलपिण्डीमें हुआ था। उनके पिता का नाम हरबंस लाल साहनी तथा उनकी माता लक्ष्मी देवी थीं। उनके पिता अपने समय के प्रसिद्ध समाजसेवी थे।

हिन्दी फ़िल्मों के ख्यातिप्राप्त अभिनेता बलराज साहनी, भीष्म साहनी के बड़े भाई थे। पिता के समाजसेवी व्यक्तित्व का इन पर काफ़ी प्रभाव था। भीष्म साहनी का विवाह शीला जी के साथ हुआ था।

शिक्षा – भीष्म साहनी की जीवनी

भीष्म साहनी की प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही हिन्दी व संस्कृत में हुई। उन्होंने स्कूल में उर्दू व अंग्रेज़ी की शिक्षा प्राप्त करने के बाद 1937 में ‘गवर्नमेंट कॉलेज’, लाहौर से अंग्रेज़ी साहित्य में एम.ए. किया

इसके बाद उन्होने 1958 में पंजाब विश्वविद्यालय से पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की। वर्तमान समय में प्रगतिशील कथाकारों में साहनी जी का प्रमुख स्थान है। भीष्म साहनी हिन्दी और अंग्रेज़ी के अलावा उर्दू, संस्कृत, रूसी और पंजाबी भाषाओं के अच्छे जानकार थे।

करियर

देश के विभाजन से पहले Bhisham Sahniने व्यापार भी किया और इसके साथ ही वे अध्यापन का भी काम करते रहे। तदनन्तर उन्होंने पत्रकारिता एवं ‘इप्टा’ नामक मण्डली में अभिनय का कार्य किया।

साहनी जी फ़िल्म जगत् में भाग्य आजमाने के लिए बम्बई आ गये, जहाँ काम न मिलने के कारण उनको बेकारी का जीवन व्यतीत करना पड़ा।

इसके बाद उन्होंने वापस आकर दोबारा अम्बाला के एक कॉलेज में अध्यापन के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय में स्थायी रूप से कार्य किया। इस बीच उन्होंने लगभग 1957 से 1963 तक विदेशी भाषा प्रकाशन गृह मास्को में अनुवादक के रूप में बिताये। यहाँ भीष्म साहनी ने दो दर्जन के क़रीब रशियन भाषायी किताबों, टालस्टॉय, ऑस्ट्रोव्स्की, औतमाटोव की किताबों का हिन्दी में रूपांतर किया।

Bhisham Sahni ने 1965 से 1967 तक “नई कहानियाँ” का सम्पादन किया। साथ ही वे प्रगतिशील लेखक संघ तथा अफ़्रो एशियाई लेखक संघ से सम्बद्ध रहे। वे 1993 से 1997 तक ‘साहित्य अकादमी एक्जिक्यूटिव कमेटी’ के सदस्य भी रहे।

कृतियाँ

कहानी संग्रह
भाग्य रेखा
पहला पाठ
भटकती राख
पटरियाँ
‘वांङ चू’ शोभायात्रा
निशाचर
मेरी प्रिय कहानियाँ
अहं ब्रह्मास्मि
अमृतसर आ गया
चीफ़ की दावत
उपन्यास संग्रह
झरोखे
कड़ियाँ
तमस
बसन्ती
मायादास की माड़ी
कुन्तो
नीलू निलीमा निलोफर
नाटक संग्रह
हानूस
कबिरा खड़ा बाज़ार में
माधवी
गुलेल का खेल (बालोपयोगी कहानियाँ)।
मुआवज़े
अन्य प्रकाशन
पहला पथ
भटकती राख
पटरियाँ
शोभायात्रा
पाली
दया
कडियाँ
आज के अतीत

यशपाल तथा प्रेमचंद का प्रभाव

एक कथाकार के रूप में भीष्म साहनी पर यशपाल और प्रेमचंद की गहरी छाप है। उनकी कहानियों में अन्तर्विरोधों व जीवन के द्वन्द्वों, विसंगतियों से जकड़े मध्य वर्ग के साथ ही निम्न वर्ग की जिजीविषा और संघर्षशीलता को उद्घाटित किया गया है। जनवादी कथा आन्दोलन के दौरान भीष्म साहनी ने सामान्य जन की आशा, आकांक्षा, दु:ख, पीड़ा, अभाव, संघर्ष तथा विडम्बनाओं को अपने उपन्यासों से ओझल नहीं होने दिया।

नई कहानी में उन्होंने कथा साहित्य की जड़ता को तोड़कर उसे ठोस सामाजिक आधार दिया। एक भोक्ता की हैसियत से भीष्म जी ने देश के विभाजन के दुर्भाग्यपूर्ण खूनी इतिहास को भोगा है, जिसकी अभिव्यक्ति ‘तमस’ में हम बराबर देखते हैं। जहाँ तक नारी मुक्ति की समस्या का प्रश्न है, उन्होंने अपनी रचनाओं में नारी के व्यक्तित्व विकास, स्वातन्त्र्य, एकाधिकार, आर्थिक स्वतन्त्रता, स्त्री शिक्षा तथा सामाजिक उत्तरदायित्व आदि उसकी ‘सम्मानजनक स्थिति’ का समर्थन किया है। एक तरह से देखा जाए तो साहनी जी प्रेमचंद के पदचिन्हों पर चलते हुए उनसे भी कहीं आगे निकल गए हैं।

उनकी रचनाओं में सामाजिक अन्तर्विरोध पूरी तरह उभरकर आया है। राजनैतिक मतवाद अथवा दलीयता के आरोप से दूर भीष्म साहनी ने भारतीय राजनीति में निरन्तर बढ़ते भ्रष्टाचार, नेताओं की पाखण्डी प्रवृत्ति, चुनावों की भ्रष्ट प्रणाली, राजनीति में धार्मिक भावना, साम्प्रदायिकता, जातिवाद का दुरुपयोग, भाई-भतीजावाद, नैतिक मूल्यों का ह्रास, व्यापक स्तर पर आचरण भ्रष्टता, शोषण की षड़यन्त्रकारी प्रवृत्तियों व राजनैतिक आदर्शों के खोखलेपन आदि का चित्रण बड़ी प्रामाणिकता व तटस्थता के साथ किया है।

उनका सामाजिक बोध व्यक्तिगत अनुभव पर आधारित था। उनके उपन्यासों में शोषणहीन, समतामूलक प्रगतिशील समाज की रचना, पारिवारिक स्तर, रूढ़ियों का विरोध तथा संयुक्त परिवार के पारस्परिक विघटन की स्थितियों के प्रति असन्तोष व्यक्त हुआ है।

पुरस्कार – भीष्म साहनी की जीवनी

  • भीष्म साहनी को उनकी “तमस” नामक कृति पर ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ (1975) से सम्मानित किया गया था।
  • उन्हें ‘शिरोमणि लेखक सम्मान’ (पंजाब सरकार) (1975)
  • ‘लोटस पुरस्कार’ (अफ्रो-एशियन राइटर्स असोसिएशन की ओर से 1970)
  • ‘सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार’ (1983)
  • 1998 में भारत सरकार ने उन्हे पद्म भूषण से नवाजा।
  • शलाका सम्मान, नयी दिल्ली, 1999
  • मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, मध्य प्रदेश, 2000-01
  • संगीत नाटक अकादमी अवार्ड, 2001
  • सर्वोत्तम हिंदी उपन्यासकार के लिए सर सैयद नेशनल अवार्ड, 2002
  • 2002 में भारत के सर्वोच्च साहित्यिक पुरस्कार साहित्य अकादमी फ़ेलोशिप से सम्मानित किया गया।
  • 2004 में राशी बन्नी द्वारा किये गये नाटक के लिए इंटरनेशनल थिएटर फेस्टिवल, रशिया में उन्हें कॉलर ऑफ़ नेशन अवार्ड से सम्मानित किया गया।
  • 31 मई 2017 को भारतीय डाक ने भीष्म साहनी के सम्मान में उनके नाम का एक पोस्टेज स्टेम्प भी जारी किया है।

मृत्यु

भीष्म साहनी की मृत्यु 11 जुलाई  2003 को दिल्ली में हुई थी।

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