ईश्वर चन्द्र विद्यासागर की जीवनी – Ishwar Chandra Vidyasagar Biography Hindi

आज इस आर्टिकल में हम आपको ईश्वर चन्द्र विद्यासागर की जीवनी – Ishwar Chandra Vidyasagar Biography Hindi के बारे में बताएगे।

ईश्वर चन्द्र विद्यासागर की जीवनी – Ishwar Chandra Vidyasagar Biography Hindi

ईश्वर चन्द्र विद्यासागर की जीवनी - Ishwar Chandra Vidyasagar Biography Hindi

ईश्वर चन्द्र विद्यासागर एक प्रसिद्ध दार्शनिक, शिक्षाविद, समाज सुधारक, लेखक, अनुवादक थे।

संस्कृत भाषा और दर्शन में विशिष्ट ज्ञान के कारण विद्यार्थी जीवन में ही ‘विद्यासागर’ की उपाधि मिली।

उन्ही के प्रयासों से 1856 में विधवा-पुनर्विवाह कानून पारित किया।

उन्होने अपने इकलौते बेटे का विवाह एक विधवा से किया था। 2004 के सर्वेक्षण में उन्हे ‘अब तक का सर्वश्रेष्ठ बंगाली’ माना गया।

जन्म

ईश्वर चन्द्र विद्यासागर का जन्म 26 सितंबर 1820 को बंगाल के मेदिनीपुर जिले के वीरसिंह गाँव में हुआ था।

वे एक काफी गरीब  से थे।

उनके पिता का नाम ठाकुरदास बन्द्योपाध्याय तथा उनकी माता का नाम भगवती देवी  था।

उनका वास्तविक नाम ईश्वर चन्द्र बन्द्योपाध्याय था। उनकी पत्नी का नाम दीनामणि देवी था।

उनके बेटे का नाम नारायण चंद्र बन्द्योपाध्याय है।

शिक्षा

ईश्वर चन्द्र विद्यासागर ने प्रारम्भिक शिक्षा गाँव के स्कूल से ही प्राप्त करने के बाद छ: वर्ष की आयु में ही ईश्वर चन्द्र पिता के साथ कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) आ गये थे। वह कोई भी चीज़ बहुत जल्दी सीख जाते थे।

उत्कृष्ट शैक्षिक प्रदर्शन के कारण उन्हें विभिन्न संस्थानों द्वारा कई छात्रवृत्तियाँ प्रदान की गई थीं। वे उच्चकोटि के विद्वान् थे। संस्कृत भाषा और दर्शन में विशिष्ट ज्ञान के कारण विद्यार्थी जीवन में ही ‘विद्यासागर’ की उपाधि मिली।

करियर – ईश्वर चन्द्र विद्यासागर की जीवनी

1839 में उन्होंने कानून की पढ़ाई पूरी की और फिर साल 1841 में उन्होंने फोर्ट विलियम कॉलेज में पढ़ाना शुरू कर दिया था। उस वक्त उनकी उम्र मात्र इक्कीस साल  के ही थी। फोर्ट विलियम कॉलेज में पांच साल तक अपनी सेवा देने के बाद उन्होंने संस्कृत कॉलेज में सहायक सचिव के तौर पर सेवाएं दीं।

यहां से उन्होंने पहले साल से ही शिक्षा पद्धति को सुधारने के लिए कोशिशें शुरू कर दी और प्रशासन को अपनी सिफारिशें सौंपी। इस वजह से तत्कालीन कॉलेज सचिव रसोमय दत्ता और उनके बीच तकरार भी पैदा हो गई। जिसके कारण उन्हें कॉलेज छोड़ना पड़ा। लेकिन, उन्होंने 1849 में एक बार वापसी की और साहित्य के प्रोफेसर के तौर पर संस्कृत कॉलेज से जुडे़। फिर जब उन्हें संस्कृत कालेज का प्रधानाचार्य बनाया गया तो उन्होंने कॉलेज के दरवाजे सभी जाति के बच्चों के लिए खोल दिए।

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समाज सुधारक के रूप में योगदान

ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने स्थानीय भाषा और लड़कियों की शिक्षा के लिए स्कूलों की एक श्रृंखला के साथ कोलकाता में मेट्रोपॉलिटन कॉलेज की स्थापना की।

इससे भी कई ज्यादा उन्होंने इन स्कूलों को चलाने के पूरे खर्च की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ली।

स्कूलों के खर्च के लिए वह विशेष रूप से स्कूली बच्चों के लिए बंगाली में लिखी गई किताबों की बिक्री से फंड जुटाते थे। उन्होंने विधवाओं की शादी के हख के लिए खूब आवाज उठाई और उसी का नतीजा था कि विधवा पुनर्विवाह कानून-1856 पारित हुआ।

उन्होंने खुद एक विधवा से अपने बेटे की शादी करवाई थी।

उन्होंने बहुपत्नी प्रथा और बाल विवाह के खिलाफ भी आवाज उठाई थी।

उनके इन्हीं प्रयासों ने उन्हें समाज सुधारक के तौर पर पहचान दी।

उन्होंने साल 1848 में वैताल पंचविंशति नामक बंगला भाषा की प्रथम गद्य रचना का भी प्रकाशन किया था।

नैतिक मूल्यों के संरक्षक और शिक्षाविद विद्यासागर का मानना था कि अंग्रेजी और संस्कृत भाषा के ज्ञान का समन्वय करके भारतीय और पाश्चात्य परंपराओं के श्रेष्ठ को हासिल किया जा सकता है।

विचार – ईश्वर चन्द्र विद्यासागर की जीवनी

  • जो नास्तिक हैं उनको वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भगवान में विश्वाश करना चाहिए इसी में उनका हित है
  • अपने हित से पहले, समाज और देश के हित को देखना एक विवेक युक्त सच्चे नागरिक का धर्म होता है
  • संयम विवेक देता है, ध्यान एकाग्रता प्रदान करता है। शांति, सन्तुष्टी और परोपकार मनुष्यता देती है
  • दुसरो के कल्याण से बढ कर, दुसरा और कोई नेक काम और धर्म नही होता
  • जो मनुष्य संयम के साथ, विर्द्याजन करता है, और अपने विद्या से सब का परोपकार करता है। उसकी पूजा सिर्फ इस लोक मे नही वरन परलोक मे भी होती है।
  • एक मनुष्य का सबसे बङा कर्म दुसरो की भलाई, और सहयोग होना चाहिए; जो एक सम्पन्न राष्ट्र का निमार्ण करता हैै
  • संसार मे सफल और सुखी वही लोग हैं, जिनके अन्दर “विनय” हो और विनय विद्या से ही आती है।
  • विद्या” सबसे अनमोल ‘धन’ है; इसके आने मात्र से ही सिर्फ अपना ही नही अपितु पूरे समाज का कल्याण होता है।
  • समस्त जीवोंं मेंं मनुष्य सर्वश्रेष्ठ बताया गया है; क्यूंकि उसके पास आत्मविवेक और आत्मज्ञान है।

पुस्तकें

  • Marriage of Hindu widows – 1856
  • Unpublished Letters of Vidyasagar

मृत्यु

ईश्वर चन्द्र विद्यासागर की मृत्यु 70 साल की आयु में 29 जुलाई, 1891 को कोलकाता में हुआ था।

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