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श्री जानकी वल्लभ शास्त्री की जीवनी – Shri Janki Ballabh Shastri Biography Hindi

आज इस आर्टिकल में श्री जानकी वल्लभ शास्त्री की जीवनी – Shri Janki Ballabh Shastri Biography Hindi के बारे में बताएंगे।

श्री जानकी वल्लभ शास्त्री की जीवनी – Shri Janki Ballabh Shastri Biography Hindi

री जानकी वल्लभ शास्त्री की जीवनी

श्री जानकी वल्लभ शास्त्री छायावादोत्तर काल के विख्यात प्रसिद्ध कवि, लेखक और आलोचक थे।

उन्हे उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा ‘भारत भारती पुरस्कार’ से भी सम्मानित किया गया था।

वे उन थोड़े से कवियों में रहे, जिन्हें हिंदी कविता के पाठकों से बहुत मान सम्मान मिलता था।

आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री का काव्य संसार बहुत ही विविध और व्यापक है।

शुरुआत में उन्होंने संस्कृत में कविताएं लिखी थी। फिर महाकवि निराला की प्रेरणा से हिंदी में आ गए।

जन्म

श्री जानकी वल्लभ शास्त्री का जन्म 5 फरवरी, 1916 में बिहार के मेगरा गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री रामानुग्रह शर्मा थे। उनके पिता का देहांत जानकी वल्लभ के बचपन के समय में ही हो गया था।

उन्हें पशुओं का पालन करना बहुत ही पसंद था। उनके यहां दर्जनों, गाय, सांड, बछड़े तथा बिल्ली और कुत्ते थे। पशुओं से उन्हें इतना प्रेम था कि गाय क्या, बछड़ों को भी भेजते नहीं थे और उनके मरने पर उन्हें अपनी आवास के परिसर में दफना देते थे।  

उनका दाना पानी जुटाने में उनका परेशान रहना स्वाभाविक था। क्योंकि उनके पास ज्यादा धन नहीं था। उनकी पत्नी का नाम छाया देवी है।

शिक्षा – श्री जानकी वल्लभ शास्त्री की जीवनी

जानकी वल्लभ शास्त्री ने11 वर्ष की वय में ही उन्होंने 1927 में बिहार-उड़ीसा की सरकारी संस्कृत परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की। 16 वर्ष की आयु में शास्त्री की उपाधि  प्राप्त करने के बाद वे काशी हिन्दू विश्वविद्यालय चले गए।

वे वहां 1932 से 1938 तक रहे। उनकी विधिवत् शिक्षा-दीक्षा तो संस्कृत में ही हुई थी, लेकिन अपनी मेहनत से उन्होंने अंग्रेज़ी और बांग्ला का अच्छा ज्ञान प्राप्त किया।

करियर

छोटी उम्र में ही अपने पिता के देहांत कारण वे आर्थिक समस्याओं से जूझ रहे थे। आर्थिक समस्याओं के निवारण के लिए उन्होंने बीच-बीच में नौकरी भी की थी।

  • 1936 में लाहौर में अध्यापन कार्य किया
  • 1937-38 में रायगढ़ (मध्य प्रदेश) में राजकवि भी रहे।
  • 1934-35 में इन्होंने साहित्याचार्य की उपाधि स्वर्णपदक के साथ अर्जित की और पूर्वबंग सारस्वत समाज ढाका के द्वारा साहित्यरत्न घोषित किए गए।
  • 1940-41 में रायगढ़ छोड़कर मुजफ्फरपुर आने पर इन्होंने वेदांतशास्त्री और वेदांताचार्य की परीक्षाएं बिहार भर में प्रथम आकर पास की।
  • 1944 से 1952 तक गवर्नमेंट संस्कृत कॉलेज में साहित्य-विभाग में प्राध्यापक, दोबारा अध्यक्ष रहे।
  • 1953 से 1978 तक बिहार विश्वविद्यालय के रामदयालु सिंह कॉलेज, मुजफ्फरपुर में हिन्दी के प्राध्यापक रहकर 1979-80 में अवकाश ग्रहण किया।

रचनाएँ

जानकी वल्लभ शास्त्री का पहला गीत ‘किसने बांसुरी बजाई’ काफी लोकप्रिय हुआ। प्रो. नलिन विमोचन शर्मा ने उन्हें जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, सुमित्रानंदन पंत और महादेवी के बाद पांचवां छायावादी कवि कहा है, लेकिन सचाई यह है कि वे भारतेंदु और श्रीधर पाठक द्वारा प्रवर्तित और विकसित उस स्वच्छंद धारा के आखिरी कवि थे, जो छायावादी अतिशय लाक्षणिकता और भावात्मक रहस्यात्मकता से मुक्त थी।

शास्त्रीजी ने कहानियाँ, काव्य-नाटक, आत्मकथा, संस्मरण, उपन्यास और आलोचना भी लिखी है। उनका उपन्यास ‘कालिदास’ भी बृहत प्रसिद्ध हुआ था।

उन्होंने 16 साल की आयु  में ही लिखना आरंभ किया था। उनकी पहली रचना ‘गोविन्दगानम्‌’ है जिसकी पदशय्या को कवि जयदेव से अबोध स्पर्द्धा की विपरिणति मानते हैं।

‘रूप-अरूप’ और ‘तीन-तरंग’ के गीतों के बाद ‘कालन’, ‘अपर्णा’, ‘लीलाकमल’ और ‘बांसों का झुरमुट’-  उनके चार कथा संग्रह प्रकाशित हुए।

उनके द्वारा लिखित चार समीक्षात्मक ग्रंथ-’साहित्यदर्शन’, ‘चिंताधारा,’ ‘त्रयी’ , और ‘प्राच्य साहित्य’ हिन्दी में भावात्मक समीक्षा के सर्जनात्मक रूप के कारण समादृत हुआ।

1945-50 तक इनके चार गीति काव्य प्रकाशित हुए-’शिप्रा’, ‘अवन्तिका’,’ मेघगीत’ और ‘संगम’। कथाकाव्य ‘गाथा’ का प्रकाशन सामाजिक दृष्टिकोण से क्रांतिकारी है। इन्होंने एक महाकाव्य ‘राधा’ की रचना की जो सन्‌ 1971 में प्रकाशित हुई।

’हंस बलाका’ गद्य महाकाव्य की इनकी रचना हिन्दी जगत् की एक अमूल्य निधि है। छायावादोत्तर काल में प्रकाशित पत्र-साहित्य में व्यक्तिगत पत्रों के स्वतंत्र संकलन के अंतर्गत शास्त्री द्वारा संपादित ‘निराला के पत्र’ (1971) उल्लेखनीय है।

इनकी प्रमुख कृतियां संस्कृत में- ’काकली’, ‘बंदीमंदिरम’, ‘लीलापद्‌मम्‌’, हिन्दी में ‘रूप-अरूप’, ‘कानन’, ‘अपर्णा’, ‘साहित्यदर्शन’, ‘गाथा’, ‘तीर-तरंग’, ‘शिप्रा’, ‘अवन्तिका’, ‘मेघगीत’, ‘चिंताधारा’, ‘प्राच्यसाहित्य’, ‘त्रयी’, ‘पाषाणी’, ‘तमसा’, ‘एक किरण सौ झाइयां’, ‘स्मृति के वातायन’, ‘मन की बात’, ‘हंस बलाका’, ‘राधा’ आदि प्रमुख हैं

जानकी वल्लभ शास्त्री द्वारा लिखित रचनाएँ इस प्रकार है –

काव्य संग्रह

बाललताअंकुरउन्मेष
रूप-अरूपतीर-तरंगशिप्रा
अवन्तिकामेघगीतगाथा
प्यासी-पृथ्वीसंगमउत्पलदल
चन्दन वनशिशिर किरणहंस किंकिणी
सुरसरीगीतवितान
धूपतरीबंदी मंदिरम्‌

समीक्षा

  • साहित्य दर्शन
  • त्रयी
  • प्राच्य साहित्य
  • स्थायी भाव और सामयिक साहित्य
  • चिन्ताधारा

संगीतिका

  • पाषाणी
  • तमसा
  • इरावती

नाटक

  • देवी
  • ज़िन्दगी
  • आदमी
  • नील-झील

उपन्यास

  • एक किरण : सौ झांइयां
  • दो तिनकों का घोंसला
  • अश्वबुद्ध
  • कालिदास
  • चाणक्य शिखा (अधूरा)

कहानी संग्रह

  • कानन
  • अपर्णा
  • लीला कमल
  • सत्यकाम
  • बांसों का झुरमुट

ग़ज़ल संग्रह

  • सुने कौन नग़मा
  • महाकाव्य
  • राधा

संस्कृत काव्य

  • काकली

संस्मरण

अजन्ता की ओरनिराला के पत्रस्मृति के वातायन
नाट्य सम्राट पृथ्वीराज कपूरहंस-बलाकाकर्म क्षेत्रे मरु क्षेत्र
अनकहा निराला

ललित निबंध

  • मन की बात
  • जो न बिक सकीं

 पुरस्कार

  • राजेंद्र शिखर पुरस्कार
  • भारत भारती पुरस्कार
  • शिव सहाय पूजन पुरस्कार
  • शास्त्री की उपाधि

मृत्यु – श्री जानकी वल्लभ शास्त्री की जीवनी

श्री जानकी वल्लभ शास्त्री की मृत्यु 98 वर्ष की आयु में 7 अप्रैल, 2011 को बिहार के मुजफ्फरनगर जिले में हुई ।

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