सूरज भान की जीवनी – Suraj Bhan Biography Hindi

आज इस आर्टिकल में हम आपको सूरज भान की जीवनी – Suraj Bhan Biography Hindi के बारे में बताएंगे।

सूरज भान की जीवनी – Suraj Bhan Biography Hindi

सूरज भान की जीवनी

सूरज भान भाजपा के दिग्गज नेताओं में शुमार रहे वे चार बार सांसद, दो राज्यों
के राज्यपाल और केंद्र और प्रदेश सरकार में मंत्री रह चुके थे।

सूराज भान जी उत्तर प्रदेश और हिमाचल के साथ -साथ बिहार के राज्यपाल रह चुके
थे।

1996 में केंद्रीय मंत्री रह चुके सूरजभान देवीलाल की सरकार में 1987 से लेकर 1989 तक मंत्री रहे।

साल 2002 में वे उपराष्ट्रपति पद की दौड़ में शामिल रहे।

वर्ष 2004 में उन्हें एससी /एसटी आयोग का चेयरमैन भी नियुक्त किया गया।

जन्म

सूरज भान का जन्म 1 अक्टूबर 1928 को यमुनानगर के महलांवली गांव में हुआ था।

वे एक दलित परिवार से थे।

उनकी धर्मपत्नी श्रीमती चमेली देवी सामाजिक कल्याण कार्यों में रुचि रखती थी।

पारिवारिक स्तर पर उनका सुशिक्षित सुखी व संपन्न परिवार था।

सूरज भान के बेटे का नाम अरुण भान है। उनके बेटे देश की सबसे बड़ी पंचायत में प्रवेश का टिकट मांग रहे हैं।

हालांकि वह मुलाना से विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं, लेकिन जीत नहीं पाए थे।

करीब 14 साल पहले विश का चुनाव हार चुके अरुण कुमार ने उस समय ऐलान कर दिया कि था कि वह भविष्य में कभी विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ेंगे।  इस बार रतन लाल कटारिया के साथ-साथ अरुण कुमार का नाम आने वाले दावेदारों के नाम की सूची में शामिल था।

शिक्षा – सूरज भान की जीवनी

सूरज भान ने अपनी शिक्षा अम्बाला में प्राप्त की और इसके बाद पंजाबकुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय से एम.ए., एल.एल.बी. की शिक्षा ग्रहण की ।

योगदान

सूरजभान ने भारत सरकार के डाक तार विभाग से देशसेवा का कार्य प्रारम्भ किया।

वे आरम्भ से ही दलित, पिछड़े वर्गोें तथा मजदूरों के हितों के प्रबल समर्थक रहें।

सेवाकाल के दौरान 1952 से 1967 तक वे केवल डाक तार विभाग की यूनियन के ही कार्यकर्ता नहीं थे, बल्कि अन्य विभाग व कामगारों की भलाई के लिये उनके संगठन में भी लगातार अपना समय, सुझाव व सहयोग सक्रिय रूप से देते रहे।

जहां पर भी इन वर्गों पर अन्याय हुआ,उन्होंने उसका डटकर मुकाबला किया।

इन्होंने किसान आन्दोलन व केन्द्रीय सरकार कर्मचारी हड़ताल के दौरान गिरफ़्तारियां भी दीं तथा तीन माह तक जेल में रहे।

आपात काल में तत्कालीन सरकार के तानाशाही रवैये का विरोध करने के कारण मीसा के अन्तर्गत उन्नीस माह तक नजरबन्द
रहना पड़ा।

राजनीतिक करियर

सूरजभान का राजनितिक करियर भारतीय जनसंघ से आरम्भ हुआ। वे भारतीय जनसंघ की 1970-1973 तक अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य, 1973-1976 तक भारतीय जनसंघ के अनुसूचित जाति/जनजाति प्रकोष्ठ के इन्चार्ज व हरियाणा प्रदेश के सेक्रेटरी रहे।

इन्होंने हरियाणा में दलितों के हितों के लिये संगठित हरिजन संघर्ष समिति के संगठन सचिव का महत्त्वपूर्ण पद संभाला तथा उसका विस्तार पूरे प्रदेश में किया, श्री सूरजभान जी अखिल भारतीय डिप्रेरड क्लासेज लीग के महासचिव भी रहे।

ये 1967 में अम्बाला से लोकसभा संसदीय चुनाव जीते। 1968 से 1970 तक व 1977 से 1979 की अवधि में संसद की अनुसूचित जाति/जनजाति कल्याण समिति के सदस्य भी रहे।इसके अतिरिक्त अनुसूचित जाति/जनजाति के सूची संशोधन समिति के अध्यक्ष, 1978 व 1979 में अनुसूचित जाति/जनजाति के संसदीय समिति के महासचिव तथा संसद की (पटीशन कमेटी) के सदस्य भी रहे।

इन्होंने संसदीय प्रतिनिधि मंडल के सदस्य के रूप में मिस्र, सूडान, व अल्जीरिया की विदेश यात्रा की।

हरियाणा सरकार में 1987 से 1990 तक राजस्व मंत्री रहे तथा 1996 में प्रधानमंत्री माननीय श्रीअटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में कृषि मंत्री भी रहे।

सूरजभान जी का बहुमूल्य समय दलितों व पिछड़ों के कल्याण के लिये समर्पित रहा है।

1948 में इन्होंने पंजाब अनुसूचित जाति/जनजाति विद्यार्थी परिषद संघ की स्थापना की तथा 1952 में पंजाब अनुसूचित जाति/जनजाति कल्याण संघ का संगठन किया।

इन्होंने 1969-1970 तक अंग्रेजी पत्रिका ‘‘अपराइट’’ का सम्पादन किया।

इनको बागवानी करने का बहुत ही शौक था। ये डिप्टी स्पीकर जैसे व्यस्त पदों पर विराजमान रहकर भी अपना बहुमूल्य समय ज्ञानवर्द्धन के लिये संसद के पुस्तकालय में लगाते रहे हैं।

ताकि लोकसभा में रखे जाने वाले विषयों पर बहस के दौरान माननीय सांसदों का उचित मार्ग-दर्शन कर सकें।

ये राज्यपाल के रूप में उत्तर प्रदेश (20 अप्रैल 1998-23 नवम्बर 2000), हिमाचल प्रदेश (नवम्बर 2000- मई 2003) तथा बिहार (1999) में कार्यरत रहे।

सूरज भान के राजनीतिक कैरियर पर नजर डाले तो उन्होंने-
  • अंबाला लोकसभा सीट से पहला चुनाव 1966 में जनसंघ के टिकट पर लड़ा।
  • इस चुनाव में कांग्रेस के पी.वती को 8700 वोटों से मात दी थी।
  • दूसरी बार साल 1971 में जनसंघ के टिकट पर कांग्रेस के रामप्रकाश से 122276 वोटों से हार गए थे।
  • 1977 में सूरज भान जनता पार्टी ( जनसंघ का जनता पार्टी में विलय हुआ था) से चुनाव लड़े और कांग्रेस के राम प्रकाश को 165494 वोटों से मात दी।
  • 1980 में सूरजभान जनता पार्टी से चुनाव मैदान में उतरे और कांग्रेस के सोमनाथ को 2295 वोटों से हराया।
  • 1984 में एक बार फिर मुकाबला कांग्रेस के रामप्रकाश और भाजपा के सूरजभान के बीच रहा, जिसमें सूरजभान 177352 वोटों से हार गए थे।
  • इसी तरह साल 1989 में एक बार फिर सूरजभान को कांग्रेस के रामप्रकाश ने 22649 मोटर से हार गए।
  • जबकि 1991 में वीर सूरजभान कांग्रेस के राम प्रकाश से 71942 मतों से हार गए थे।
  • इसी तरह साल 1996 में सूरजभान फिर मैदान में उतरे और कांग्रेस के शेर सिंह को 87147 वोटों से मात दी।
  • जबकि साल 1998 में सूरजभान बसपा के अमन कुमार नागरा से 28648 वोटों से हार गये।

मृत्यु – सूरज भान की जीवनी

6 अगस्त 2006 को सूरज भान जी की मृत्यु हो गई।

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