आज इस आर्टिकल में हम आपको अशफाक उल्ला खान की जीवनी – Ashfaq Ulla Khan Biography Hindi के बारे में बताएगे।
अशफाक उल्ला खान की जीवनी – Ashfaq Ulla Khan Biography Hindi
(English – Ashfaq Ulla Khan)अशफाक उल्ला खान भारत के प्रसिद्ध अमर शहीद क्रांतिकारियों में गिने जाते है।
उन्होने रामप्रसाद बिस्मिल के साथ मिलकर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन की स्थापना की।
वर्ष 1925 में उन्होने चंद्रशेखर आजाद और राजेन्द्र लाहीडि जैसे क्रांतिकारियों के
साथ मिलकर काकोरी कांड को अंजाम दिया।
उन्होने वारसी और हसरत के नाम से हिन्दी और उर्दू में कई कविताएं और गजलें लिखी।
संक्षिप्त विवरण
नाम | अशफाक उल्ला खान |
पूरा नाम | अशफाक उल्ला खान वारसी हसरत |
जन्म | 22 अक्टूबर 1900 ई. |
जन्म स्थान | शाहजहाँपुर, उत्तर प्रदेश |
पिता का नाम | मोहम्मद शफ़ीक़ उल्ला ख़ाँ |
माता का नाम | मजहूरुन्निशाँ बेगम |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
धर्म |
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जन्म – अशफाक उल्ला खान की जीवनी
अशफाक उल्ला खान का जन्म 22 अक्टूबर, 1900 ई. को शाहजहाँपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ था।
उनका पूरा नाम अशफाक उल्ला खान वारसी हसरत था।
उनके पिता का नाम मोहम्मद शफ़ीक़ उल्ला ख़ाँ था, जो एक पठान परिवार से ताल्लुक रखते थे
तथा उनकी माता का नाम मजहूरुन्निशाँ बेगम थीं।
बिस्मिल से मुलाकात
अशफ़ाक़ अपने भाई-बहनों में सबसे छोटे थे। सब उन्हें प्यार से अच्छू कहते थे।
एक रोज उनके बड़े भाई रियासत उल्ला ने अशफ़ाक़ को बिस्मिल के बारे में बताया कि वह बड़ा काबिल सख्श है और आला दर्जे का शायर भी, गोया आजकल मैनपुरी काण्ड मॅ गिरफ्तारी की वजह से शाहजहाँपुर में नजर नहीं आ रहा।
काफी अर्से से फरार है खुदा जाने कहाँ और किन हालात में बसर करता होगा।
बिस्मिल उनका सबसे उम्दा क्लासफेलो है। अशफ़ाक़ तभी से बिस्मिल से मिलने के लिये बेताव हो गये।
वक्त गुजरा। 1920 में आम मुआफी के बाद राम प्रसाद बिस्मिल अपने वतन शाहजहाँपुर आये और् घरेलू कारोबार में लग गये। अशफ़ाक़ ने कई बार बिस्मिल से मुलाकात करके उनका विश्वास अर्जित करना चाहा परन्तु कामयाबी नहीं मिली।
चुनाँचे एक रोज रात को खन्नौत नदी के किनारे सुनसान जगह में मीटिंग हो रही थी अशफ़ाक़ वहाँ जा पहुँचे। बिस्मिल के एक शेर पर जब अशफ़ाक़ ने आमीन कहा तो बिस्मिल ने उन्हें पास बुलाकर परिचय पूछा। यह जानकर कि अशफ़ाक़ उनके क्लासफेलो रियासत उल्ला का सगा छोटा भाई है और उर्दू जुबान का शायर भी है, बिस्मिल ने उससे आर्य समाज मन्दिर में आकर अलग से मिलने को कहा।
घर वालों के लाख मना करने पर भी अशफ़ाक़ आर्य समाज जा पहुँचे और राम प्रसाद बिस्मिल से काफी देर तक गुफ्तगू करने के बाद उनकी पार्टी मातृवेदी के ऐक्टिव मेम्बर भी बन गये। यहीं से उनकी जिन्दगी का नया फलसफा शुरू हुआ।
वे शायर के साथ-साथ कौम के खिदमतगार भी बन गये।
काकोरी काण्ड
महात्मा गांधी का प्रभाव अशफाक उल्ला खान के जीवन पर प्रारम्भ से ही था, लेकिन जब ‘चौरी चौरा घटना’ के बाद गांधीजी ने ‘असहयोग आंदोलन’ वापस ले लिया तो उनके मन को अत्यंत पीड़ा पहुँची। रामप्रसाद बिस्मिल और चन्द्रशेखर आज़ाद के नेतृत्व में 8 अगस्त, 1925 को शाहजहाँपुर में क्रांतिकारियों की एक अहम बैठक हुई, जिसमें हथियारों के लिए ट्रेन में ले जाए जाने वाले सरकारी ख़ज़ाने को लूटने की योजना बनाई गई।
क्रांतिकारी जिस धन को लूटना चाहते थे, दरअसल वह धन अंग्रेज़ों ने भारतीयों से ही हड़पा था।
9 अगस्त, 1925 को अशफाक उल्ला खान , राम प्रसाद बिस्मिल, चन्द्रशेखर आज़ाद, राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, ठाकुर रोशन सिंह, सचिन्द्र बख्शी, केशव चक्रवर्ती, बनवारी लाल, मुकुन्द लाल और मन्मथ लाल गुप्त ने अपनी योजना को अंजाम देते हुए लखनऊ के नजदीक ‘काकोरी’ में ट्रेन द्वारा ले जाए जा रहे सरकारी ख़ज़ाने को लूट लिया। ‘भारतीय इतिहास’ में यह घटना “काकोरी कांड” के नाम से जानी जाती है।
इस घटना को आज़ादी के इन मतवालों ने अपने नाम बदलकर अंजाम दिया था।
अशफाक उल्ला खान ने अपना नाम ‘कुमारजी’ रखा।
इस घटना के बाद ब्रिटिश हुकूमत पागल हो उठी और उसने बहुत से निर्दोषों को पकड़कर जेलों में ठूँस दिया। अपनों की दगाबाजी से इस घटना में शामिल एक-एक कर सभी क्रांतिकारी पकड़े गए, लेकिन चन्द्रशेखर आज़ाद और अशफाक उल्ला खान पुलिस के हाथ नहीं आए।
गिरफ्तारी – अशफाक उल्ला खान की जीवनी
इस घटना के बाद अशफाक उल्ला खान शाहजहाँपुर छोड़कर बनारस आ गए और वहाँ दस महीने तक एक इंजीनियरिंग कंपनी में काम किया। इसके बाद उन्होंने इंजीनियरिंग के लिए विदेश जाने की योजना बनाई ताकि वहाँ से कमाए गए पैसों से अपने क्रांतिकारी साथियों की मदद करते रहें।
विदेश जाने के लिए वह दिल्ली में अपने एक पठान मित्र के संपर्क में आए, लेकिन उनका वह दोस्त विश्वासघाती निकला। उसने इनाम के लालच में अंग्रेज़ पुलिस को सूचना दे दी और इस तरह अशफाक उल्ला खान पकड़ लिए गए।
सरकारी गवाह बनाने की कोशिश
जेल में अशफ़ाक़ को कई तरह की यातनाएँ दी गईं। जब उन पर इन यातनाओं का कोई असर नहीं हुआ तो अंग्रेज़ों ने तरह−तरह की चालें चलकर उन्हें सरकारी गवाह बनाने की कोशिश की, लेकिन अंग्रेज़ अपने इरादों में किसी भी तरह कामयाब नहीं हो पाए।
अंग्रेज अधिकारियों ने उनसे यह तक कहा कि हिन्दुस्तान आज़ाद हो भी गया तो भी उस पर मुस्लिमों का नहीं हिन्दुओं का राज होगा और मुस्लिमों को कुछ नहीं मिलेगा। इसके जवाब में अशफाक उल्ला खान ने अंग्रेज़ अफ़सर से कहा कि- “फूट डालकर शासन करने की चाल का उन पर कोई असर नहीं होगा और हिन्दुस्तान आज़ाद होकर रहेगा”।
उन्होंने अंग्रेज़ अधिकारी से कहा- “तुम लोग हिन्दू-मुस्लिमों में फूट डालकर आज़ादी की लड़ाई को अब बिलकुल नहीं दबा सकते।
अपने दोस्तों के ख़िलाफ़ मैं सरकारी गवाह कभी नहीं बनूँगा।”
शहीद – अशफाक उल्ला खान की जीवनी
19 दिसंबर 1927 को अशफाक उल्ला खान को फैजाबाद जेल में फाँसी दे दी गई।
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