एच डी देवगौड़ा की जीवनी – H. D. Deve Gowda Biography Hindi

आज इस आर्टिकल में हम आपको एच डी देवगौड़ा की जीवनी – H. D. Deve Gowda Biography Hindi के बारे में बताएगे।

एच डी देवगौड़ा की जीवनी – H. D. Deve Gowda Biography Hindi

एच डी देवगौड़ा की जीवनी
एच डी देवगौड़ा की जीवनी

(English – H. D. Deve Gowda)एच डी देवगौड़ा  भारत के बारहवें प्रधानमंत्री हैं। उनका कार्यकाल 1996 से 1997 तक रहा।

उन्होंने 1953 में राजनीति में प्रवेश करने से पहले कुछ समय के लिए ठेकेदार के रूप में काम किया।

उन्होने  सर्वप्रथम 1953 में कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ली।

वह 1962 तक कांग्रेस के सदस्य रहे।

संक्षिप्त विवरण

 

नाम एच डी देवगौड़ा
पूरा नाम हरदनहल्ली डोडेगौडा देवगौडा
जन्म 18 मई  1933
जन्म स्थान  हरदन हल्ली ग्राम, हासन ताक़ुमा, कर्नाटक
पिता का नाम श्री दोड्डे गौड़ा
माता का नाम देवम्या
राष्ट्रीयता भारतीय
धर्म
जाति

जन्म – एच डी देवगौड़ा की जीवनी

H. D. Deve Gowda का जन्म 18 मई  1933 को हरदन हल्ली ग्राम, हासन ताक़ुमा, कर्नाटक में हुआ था।

उनका पूरा नाम हरदनहल्ली डोडेगौडा देवगौडा है।

उनके पिता का नाम श्री दोड्डे गौड़ा तथा उनकी माता का जन्म देवम्या था।

उनकी पत्नी का नाम चेनम्मा है। उनके चार बेटे और दो बेटियाँ हैं।

उनके बच्चों के नाम बेटे एच. डी. रेवन्ना (राजनीतिज्ञ), एच.डी. बालकृष्ण गौड़ा, एच.डी. रमेश
बेटी -एच. डी. अनुसूया, एच. डी. शैलजा

एक बेटा विधायक तथा एक बेटा सांसद भी रह चुके हैं।

शिक्षा

1 9 50 के दशक के अंत में उन्होंने एल। वी।

पॉलिटेक्निक, हसन से सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा अर्जित किया।

करियर

1962 तक कांग्रेस में सक्रिय कार्यकर्ता की भूमिका निभाने के बावजूद जब देवगौड़ा को उचित सम्मान प्राप्त नहीं हुआ तो कांग्रेस से इनका मोहभंग हो गया।ऐसे में वह 1962 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव में स्वतंत्र प्रत्याशी के रूप में खड़े हो गए। देवगौड़ा विधानसभा चुनाव में निर्वाचित हुए।

इस प्रकार उनके कार्यों को जनता की स्वीकृति प्राप्त हुई। इसके बाद भी देवगौड़ा अगले तीन चुनावों 1967, 1972 और 1977 में लगातार विधायक के रूप में चुने जाते रहे।लेकिन 1969 के पूर्व वह कांग्रेस पार्टी के पुन: सदस्य बन गए। ऐसा तब हुआ जब कांग्रेस पार्टी का विभाजन हुआ। उन्होंने इंदिरा गांधी की विरोधी कांग्रेस (ओ) को चुना था। देवगौड़ा कांग्रेस (ओ) के अध्यक्ष निजलिंगप्पा से काफ़ी प्रभावित थे।

उनकी प्रेरणा से ही देवगौड़ा ने ऐसा किया था। 1975 में आपातकाल के दौरान देवगौड़ा को भी जेलयात्रा करनी पड़ी थी। वह 18 महीनों तक जेल में रहे। कर्नाटक विधानसभा में वह पुन: निर्वाचित हुए तथा दो बार राज्यमंत्री भी बने।लेकिन 1982 में इन्होंने कर्नाटक मंत्रिमंडल से इस्तीफ़ा दे दिया। अगले तीन वर्षों तक राजनीति में इनका सक्रिय योगदान नहीं रहा। लेकिन 1991 में देवगौड़ा हासन लोकसभा सीट से चुने गए और प्रथम बार संसद में पहुँचे।

वह 1994 में जनता दल की राज्य इकाई के अध्यक्ष भी बने। 1994 में जनता दल का अध्यक्ष चुने जाने के बाद देवगौड़ा के भाग्य ने उनका साथ दिया और वे कर्नाटक के मुख्यमंत्री बन गए।यह 1996 में भी कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने थे। जब इन्हें प्रधानमंत्री पद की चुनौती प्राप्त हुई, तब उन्होंने यह अवसर दोनों हाथों से लपक लिया और मुख्यमंत्री पद छोड़ दिया। इस प्रकार अटल बिहारी वाजपेयी जी के 13 दिन के कार्यकाल के पश्चात् वह प्रधानमंत्री बने।

प्रधानमंत्री पद पर

31 मई को अल्पमत में होने के कारण अटलजी ने प्रधानमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया था।

उसके अगले दिन 1 जून 1996 को तुरत-फ़ुरत 24 दलों वाले संयुक्त मोर्चे का गठन किया गया।

इसे कांग्रेस ने समर्थन देने का आश्वासन दिया।

अत: देवगौड़ा को संयुक्त मोर्चे का नेता घोषित कर दिया गया। संयुक्त मोर्चा बहुमत प्राप्त था और उसे काँग्रेस का समर्थन हासिल था। लेकिन शीघ्र ही कांग्रेस ने घोषणा कर दी कि यदि उसका समर्थन चाहिए तो उन्हें नेतृत्व में परिवर्तन करना होगा।

एच. डी. देवगौड़ा कांग्रेस की नीतियों के मनोनुकूल नहीं चल रहे थे। कांग्रेस द्वारा समर्थन वापस लेने का सीधा मतलब था-संयुक्त मोर्चा सरकार का पतन हुआ। इसलिए काँग्रेस की शर्त स्वीकार करते हुए देवगौड़ा को अप्रैल 1997 को अपने पद से हटना पड़ा।

जनता दल (सेक्युलर) – एच डी देवगौड़ा की जीवनी

जनता दल (सेक्युलर) अपनी जड़ें जयप्रकाश नारायण द्वारा स्थापित जनता पार्टी में वापस लाती है जो 1977 के राष्ट्रीय चुनावों के लिए एक ही बैनर के तहत सभी विपक्षी पार्टियों को एकजुट करती हैं।

1988 में छोटे विपक्षी पार्टियों के साथ जनता पार्टी के विलय पर जनता दल का गठन हुआ था। 1989 में जब उन्होंने राष्ट्रीय मोर्चा सरकार का नेतृत्व किया, तब विश्वनाथ प्रताप सिंह जनता दल से भारत के पहले प्रधान मंत्री बने। बाद में देवेगौड़ा और इंद्र कुमार गुजराल भी थे 1996 और 1997 के क्रमशः संयुक्त मोर्चा (यूएफ) गठबंधन सरकारों के प्रधान मंत्री बने।

1999 में, जब पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ-साथ एनडीए में हाथ मिला लिया तो पार्टी कई गुटों में विभाजित हुई। मधु दंडवते सहित कई नेताओं ने देवेगौड़ा के नेतृत्व में जनता दल (सेक्युलर) गुट में हिस्सा लिया, जो इस गुट के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने।

1999 के आम चुनावों में उन्हें हराया गया लेकिन 2002 में कनकपुरा उपचुनाव जीतने के बाद वापसी हुई।

2004 में कर्नाटक में हुए चुनावों में जनता दल (सेक्युलर) ने 58 सीटें जीतीं और राज्य में सत्ताधारी गठबंधन का हिस्सा बनने के साथ उनकी पार्टी की किस्मत को पुनरुद्धार देखा।

इसके बाद में पार्टी ने भाजपा से हाथ मिला लिया और 2006 में एक वैकल्पिक सरकार बनाई।

उनके पुत्र एच डी डी कुमारस्वामी राज्य में बीजेपी-जद (एस) गठबंधन सरकार के नेतृत्व में 20 महीने तक थे।

2008 के राज्य चुनावों में, पार्टी ने खराब प्रदर्शन किया और सिर्फ 28 सीटों पर जीत हासिल की लेकिन
दक्षिण कर्नाटक में एक महत्वपूर्ण ताकत रही है।

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