एम. एस. स्वामीनाथन की जीवनी – M.S. Swaminathan Biography Hindi

आज इस आर्टिकल में हम आपको एम. एस. स्वामीनाथन की जीवनी – M.S. Swaminathan Biography Hindi के बारे में बताएगे।

एम. एस. स्वामीनाथन की जीवनी – M.S. Swaminathan Biography Hindi

एम. एस. स्वामीनाथन की जीवनी
एम. एस. स्वामीनाथन की जीवनी

(English – M.S. Swaminathan)एम. एस. स्वामीनाथन प्रसिद्ध भारतीय कृषि वैज्ञानिक थे जो भारत की ‘हरित क्रांति‘ में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका के लिए विख्यात हैं।

उन्होने प्राणी विज्ञान और कृषि विज्ञान में स्नातक की डिग्रियाँ ली। 1952 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से आनुवांशिकी में पीएचडी की।

स्वामीनाथन ने 1960 में जब भारत अन्न की कमी से जूझ रहा था तो उन्होने ज्यादा पैदावार वाली गेंहू की प्रजाति तैयार की। 1972 से 1979 तक वे भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक रहे।

एम. एस. स्वामीनाथन को ‘विज्ञान एवं अभियांत्रिकी’ के क्षेत्र में ‘भारत सरकार’ द्वारा सन 1967 में ‘पद्म श्री’, 1972 में ‘पद्म भूषण’ और 1989 में ‘पद्म विभूषण’ से सम्मानित किया गया था।

1999 में टाइम पत्रिका ने उन्हे 20वीं सदी के सबसे प्रभावी 200 एशियाई व्यक्तियों की सूची में स्थान दिया।

संक्षिप्त विवरण

 

नाम एम. एस. स्वामीनाथन
पूरा नाम मंकोम्बो सम्बासीवन स्वामीनाथन
जन्म  7 अगस्त 1925
जन्म स्थान  कुंभकोणम, तमिलनाडु
पिता का नाम  –
माता का नाम
राष्ट्रीयता भारतीय
धर्म
जाति

जन्म

M.S. Swaminathan का जन्म 7 अगस्त 1925 को कुंभकोणम, तमिलनाडु में हुआ था। उनका पूरा नाम मंकोम्बो सम्बासीवन स्वामीनाथन था।

शिक्षा – एम. एस. स्वामीनाथन की जीवनी

1952 में एम. एस. स्वामीनाथन ने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से आनुवांशिकी में पीएचडी की। उन्होने प्राणी विज्ञान और कृषि विज्ञान में स्नातक की डिग्रियाँ ली।

हरित क्रांति के अगुआ

भारत लाखों गाँवों का देश है और यहाँ की अधिकांश जनता कृषि के साथ जुड़ी हुई है। इसके बावजूद अनेक वर्षों तक यहाँ कृषि से सम्बंधित जनता भी भुखमरी के कगार पर अपना जीवन बिताती रही। इसका कारण कुछ भी हो, पर यह भी सत्य है कि ब्रिटिश शासनकाल में भी खेती अथवा मज़दूरी से जुड़े हुए अनेक लोगों को बड़ी कठिनाई से खाना प्राप्त होता था। कई अकाल भी पड़ चुके थे। भारत के सम्बंध में यह भावना बन चुकी थी कि कृषि से जुड़े होने के बावजूद भारत के लिए भुखमरी से निजात पाना कठिन है। इसका कारण यही था कि भारत में कृषि के सदियों से चले आ रहे उपकरण और बीजों का प्रयोग होता रहा था। फसलों की उन्नति के लिए बीजों में सुधार की ओर किसी का ध्यान ही नहीं गया था।

M.S. Swaminathan ही वे पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने सबसे पहले गेहूँ की एक बेहतरीन किस्म को पहचाना और स्वीकार किया। इस कार्य के द्वारा भारत को अन्न के मामले में आत्मनिर्भर बनाया जा सकता था। यह मैक्सिकन गेहूँ की एक किस्म थी, जिसे स्वामीनाथन ने भारतीय खाद्यान्न की कमी दूर करने के लिए सबसे पहले अपनाने के लिए स्वीकार किया। इसके कारण भारत के गेहूँ उत्पादन में भारी वृद्धि हुई। इसलिए स्वामीनाथन को “भारत में हरित क्रांति का अगुआ” माना जाता है। स्वामीनाथन के प्रयत्नों का परिणाम यह है कि भारत की आबादी में प्रतिवर्ष पूरा एक ऑस्ट्रेलिया समा जाने के बाद भी खाद्यान्नों के मामले में वह आत्मनिर्भर बन चुका है। भारत के खाद्यान्नों का निर्यात भी किया है और निरंतर उसके उत्पादन में वृद्धि होती रही है।

पुरस्कार – एम. एस. स्वामीनाथन की जीवनी

  • 1971 में सामुदायिक नेतृत्व के लिए ‘मैग्सेसे पुरस्कार’ से नवाजा गया।
  • 1986 में उन्हे ‘अल्बर्ट आइंस्टीन वर्ल्ड साइंस पुरस्कार’
  • 1987 में एम. एस. स्वामीनाथन को पहला ‘विश्व खाद्य पुरस्कार’ मिला।
  • एम. एस. स्वामीनाथन को 1991 में अमेरिका में ‘टाइलर पुरस्कार’  से नवाजा गया।
  • 1994 में पर्यावरण तकनीक के लिए जापान का ‘होंडा पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया।
  • 1997 में फ़्राँस का ‘ऑर्डर दु मेरिट एग्रीकोल’ (कृषि में योग्यताक्रम)
  • 1998 में मिसूरी बॉटेनिकल गार्डन (अमरीका) का ‘हेनरी शॉ पदक’
  • 1999 में ‘वॉल्वो इंटरनेशनल एंवायरमेंट पुरस्कार’
  • 1999 में ही ‘यूनेस्को गांधी स्वर्ग पदक’ से सम्मानित
  • एम. एस. स्वामीनाथन को ‘विज्ञान एवं अभियांत्रिकी’ के क्षेत्र में ‘भारत सरकार’ द्वारा सन 1967 में ‘पद्म श्री’, 1972 में ‘पद्म भूषण’ और 1989 में ‘पद्म विभूषण’ से सम्मानित किया गया था।

शोध केंद्र की स्थापना – एम. एस. स्वामीनाथन की जीवनी

विभिन्न पुरस्कारों और सम्मानों के साथ प्राप्त धनराशि से एम. एस. स्वामीनाथन ने वर्ष 1990 के दशक के आरंभिक वर्षों में ‘अवलंबनीय कृषि तथा ग्रामीण विकास’ के लिए चेन्नई में एक शोध केंद्र की स्थापना की।

‘एम. एस. स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन’ का मुख्य उदेश्य भारतीय गांवों में प्रकृति तथा महिलाओं के अनुकूल प्रौद्योगिकी के विकास और प्रसार पर आधारित रोजग़ार उपलब्ध कराने वाली आर्थिक विकास की रणनीति को बढ़ावा देना है।

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