आज इस आर्टिकल में हम आपको पंडिता रमाबाई की जीवनी – Pandita Ramabai Biography Hindi के बारे में बताएंगे।
पंडिता रमाबाई की जीवनी – Pandita Ramabai Biography Hindi
(English – Pandita Ramabai) पंडिता रमाबाई प्रख्यात भारतीय विदुषी महिला और समाज सुधारक थी।
महिलाओं के उत्थान के लिये उन्होंने न सिर्फ संपूर्ण भारत बल्कि इंग्लैंड की
भी यात्रा की।
1881 में उन्होंने ‘आर्य महिला सभा’ की स्थापना की।
अमेरिका में उनके प्रयत्न से रमाबाई एसोसिएशन बना जिसने भारत के
विधवा आश्रम का 10 वर्ष तक खर्च चलाने का जिम्मा लिया।
1919 में ब्रिटिश सरकार ने उन्हें “कैसर-ए-हिंदी” के तमगे से नवाजा था।
संक्षिप्त विवरण
नाम | पंडिता रमाबाई |
पूरा नाम | पंडिता रमाबाई मेधावी |
जन्म | 23 अप्रैल 1858 |
जन्म स्थान | मैसूर |
पिता का नाम | ‘अनंत शास्त्री’ |
माता का नाम | – |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
धर्म | हिन्दू |
जन्म – पंडिता रमाबाई की जीवनी
Pandita Ramabai का जन्म 23 अप्रैल 1858 में मैसूर रियासत में हुआ था। उनका पूरा नाम पंडिता रमाबाई मेधावी था।
उनके पिता का नाम ‘अनंत शास्त्री’ था जोकि एक विद्वान् और स्त्री-शिक्षा के समर्थक थे।
लेकिन उस समय की पारिवारिक रूढ़िवादिता इसमें बाधा बनी रही।
उनके पिता रमा के बचपन में ही साधु-संतों की मेहमानदारी के कारण निर्धन हो गए और उन्हें पत्नी तथा रमा की एक बहन और भाई के साथ गांव-गांव में पौराणिक कथाएँ सुनाकर पेट पालना पड़ा।
शिक्षा
Pandita Ramabai ने अपने पिता से ही संस्कृत की शिक्षा ली थी।
पंडिता रमाबाई बचपन से ही बेहद बुद्धिमान और आसाधारण प्रतिभा वाली महिला थीं।
सिर्फ 12 साल की छोटी सी ही उम्र में ही उन्हें संस्कृत के करीब 20 हजार श्लोक याद हो गए थे।
देशाटन के कारण उसने मराठी के साथ-साथ कन्नड़, हिन्दी, तथा बंगला भाषाएँ भी सीख लीं।
जब वे 20 वर्ष की हुए तो उन्होने संस्कृत के ज्ञान के लिए सरस्वती और पंडिता की उपाधियाँ प्राप्त हुई। तभी से वे पंडिता रमाबाई के नाम से जानी गई।
1876 से 77 के भीषण अकाल में दुर्बल पिता और माता का देहांत हो गया।
जिसके बाद में वे बच्चे पैदल भटकते रहे और तीन वर्ष में इन्होंने 4 हज़ार मील की यात्रा की।
22 साल में शादी होने के बाद उन्होंने बाल विवाह के विरोध में और विधवाओं के हालातों पर बोलना शुरू किया। मेडिकल की उपाधि हासिल करके वो ब्रिटेन गईं। यूएस गईं और स्नातक की उपाधि ली।
पति की मौत के बाद उन्होंने पुणे में आर्य महिला समाज की स्थापना की।
एक कवयित्री और लेखिका बनाने के क्रम में उन्होंने जीवन में खूब यात्राएं कीं।
रमाबाई सात भाषाएं जानती थीं, धर्मपरिवर्तन कर ईसाई बन गईं और उन्होंने बाइबल की अनुवाद मराठी में किया।
समाज सुधारक के रूप में योगदान
22 वर्ष की उम्र में पंडिता रमाबाई कोलकाता पहुंची। उन्होंने बाल विधवाओं और विधवाओं की दयनीय दशा सुधारने का बीड़ा उठाया।
उनके संस्कृत ज्ञान और भाषणों से बंगाल के समाज में हलचल मच गई।
अपने भाई की मृत्यु के बाद रमाबाई ने ‘विपिन बिहारी’ नामक अछूत जाति के एक वकील से विवाह किया, परन्तु एक नन्हीं बच्ची को छोड़कर डेढ़ वर्ष के बाद ही हैजे की बीमारी में वह भी चल बसा।
अछूत से विवाह करने के कारण रमाबाई को कट्टरपंथियों के आक्रोश का सामना करना पड़ा और वह पूना आकर स्त्री-शिक्षा के काम में लग गई।
उसकी स्थापित संस्था आर्य महिला समाज की शीघ्र ही महाराष्ट्र भर में शाखाएँ खुल गईं।
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मेधावी क्रेटर – पंडिता रमाबाई की जीवनी
मेधावी क्रेटर शुक्र ग्रह के एक गड्ढे का नाम है, जिसे रमाबाई मेधावी के नाम पर रखा गया था।
शुक्र ग्रह जिसे भोर का तारा भी कहा जाता है। इस ग्रह पर बहुत बड़े-बड़े गड्ढे हैं। इन गड्ढों का नाम कुछ प्रसिद्ध महिलाओं के नाम पर रखा गया है।
जोशी क्रेटर का नाम भारतीय मूल की महिला आनंदी गोपाल जोशी के नाम पर रखा गया तथा वीनस पर बने जीराड क्रेटर का जेरूसा जीराड के नाम पर रखा गया।
विधवाओं के लिए कार्य
अंग्रेज़ी भाषा का ज्ञान प्राप्त करने के लिए पंडिता रमाबाई 1883 ई. में इंग्लैण्ड गईं।
वहां दो वर्ष तक संस्कृत की प्रोफेसर रहने के बाद वे अमेरिका पहुंचीं।
उन्होंने इंग्लैंड में ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया था। अमेरिका में उनके प्रयत्न से रमाबाई एसोसिएशन बना जिसने भारत के विधवा आश्रम का 10 वर्ष तक खर्च चलाने का जिम्मा लिया।
इसके बाद वे 1889 में भारत लौटीं और विधवाओं के लिए शारदा सदन की स्थापना की।
बाद में कृपा सदन नामक एक और महिला आश्रम बनाया।
सम्मान
1878 में कलकत्ता विश्वविद्यालय में उन्हें संस्कृत के क्षेत्र में उनके ज्ञान और कार्य को देखते हुये सरस्वती की सर्वोच्च उपाधि से सम्मानित किया।
1919 में ब्रिटिश सरकार ने उन्हें “कैसर-ए-हिंदी” के तमगे से नवाजा था।
इसके साथ ही समाज में महलिाओं की स्थिति में सुधार लाने के लिए और महिलाओं के हक में सराहनीय काम करने के लिए भारत सरकार ने रमाबाई पर एक स्मारक टिकट भी जारी किया।
मुंबई में पंडिता रमाबाई के नाम पर एक सड़क का नाम भी रखा गया।
मृत्यु – पंडिता रमाबाई की जीवनी
Pandita Ramabai की मृत्यु सेप्टिक ब्रोंकाइटिस बीमारी की वजह से 5 अप्रैल 1922 को हुई।
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