आज इस आर्टिकल में हम आपको सुमित्रानंदन पंत की जीवनी – Sumitra Nandan Pant Biography Hindi के बारे में बताएंगे।
सुमित्रानंदन पंत की जीवनी – Sumitra Nandan Pant Biography Hindi
Sumitra Nandan Pant हिंदी साहित्य में छायावादी काल के कवि थे।
पंत जी को हिंदी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक माना जाता हैं।
इस युग को जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ और रामकुमार वर्मा जैसे कवियों का युग कहा जाता है।
वे गीत और कविताएं लिखते थे।
जब वे सात वर्ष की उम्र में थे तो उन्होंने कविता लिखना शुरु कर दिया था।
वीणा, पल्लव, चिदंबरा, युगवाणी, लोकायतन, युगपथ, स्वर्णकिरण, कला और बूढ़ा चाँद आदि उनकी प्रसिद्ध रचनाएँ थी। उनके लेखन कला के लिए सुमित्रानंदन पंत को ज्ञानपीठ पुरस्कार, पदम भूषण, साहित्य अकादमी पुरस्कार आदि कई पुरस्कारों से नवाजा गया
जन्म – सुमित्रानंदन पंत की जीवनी
सुमित्रानंदन पंत का जन्म 20 मई, 1900 को कौसानी, उत्तराखंड, भारत में हुआ था।
उनका बचपन का नाम गुसाई दत्त था।
जन्म के 6 घंटे बाद ही उनकी माँ देहांत हो गया जिसके बाद उनका लालन-पालन उनके दादी के द्वारा किया गया।
सुमित्रानंदन पंत के पिता का नाम गंगा दत्त था उस समय कौसनी के चाय बगीचे के मैनेजर थे।
पंत के भाई संस्कृत और अंग्रेजी के अच्छे जानकार थे, जो हिंदी में कुमाऊनी में कविताएं भी लिखा करते थे।
शिक्षा
सुमित्रानंदन पंत की प्रारंभिक शिक्षा कौसानी के ‘वर्नाक्यूलर स्कूल’ में हुई।
इसके बाद में उन्हें वाराणसी चले गए और वहां पर उन्होंने ‘जयनारायण हाई स्कूल’ से शिक्षा प्राप्त की।
जय नारायण हाई स्कूल से शिक्षा प्राप्त करने के बाद में उन्होंने इलाहाबाद के ‘म्योर सेंट्रल कॉलेज’ में दाखिला लिया।
वहां पर इंटरमीडिएट की परीक्षा में बैठने से पहले ही वे 1921 में असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए।
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योगदान – सुमित्रानंदन पंत की जीवनी
1921 के असहयोग आंदोलन में उन्होंने कॉलेज छोड़ दिया था, पर देश के स्वतंत्रता संग्राम की गंभीरता के प्रति उनका ध्यान 1930 के ‘नमक सत्याग्रह’ के समय से अधिक केंद्रित होने लगा, उन्हीं दिनों संयोगवश उन्हें कालाकांकर में ग्राम जीवन के अधिक निकट संपर्क में आने का अवसर मिला।
उस ग्राम जीवन की पृष्ठभूमि में जो संवेदन उनके हृदय में अंकित होने लगे, उन्हें वाणी देने का प्रयत्न उन्होंने युगवाणी (1938) और ग्राम्या (1940) में किया। यहाँ से उनका काव्य, युग का जीवन-संघर्ष तथा नई चेतना का दर्पण बन जाता है।
स्वर्णकिरण तथा उसके बाद की रचनाओं में उन्होंने किसी आध्यात्मिक या दार्शनिक सत्य को वाणी न देकर व्यापक मानवीय सांस्कृतिक तत्त्व को अभिव्यक्ति दी, जिसमें अन्न प्राण, मन आत्मा, आदि मानव-जीवन के सभी स्वरों की चेतना को संयोजित करने का प्रयत्न किया गया।
सुमित्रानंदन पंत की कुछ काव्य कृतियाँ हैं – ग्रन्थि, गुंजन, ग्राम्या, युगांत, स्वर्णकिरण, स्वर्णधूलि, कला और बूढ़ा चाँद, लोकायतन, चिदंबरा, सत्यकाम आदि। उनके अपने जीवनकाल में उनकी 28 पुस्तकें प्रकाशित हुईं, जिनमें कविताएं, पद्य-नाटक और निबंध शामिल हैं।
पंत जी अपने विस्तृत वाङमय में एक विचारक, दार्शनिक और मानवतावादी के रूप में सामने आते हैं लेकिन उनकी सबसे कलात्मक कविताएं ‘पल्लव’ में संगृहीत हैं, जो 1928 से 1934 तक लिखी गई 32 कविताओं का संग्रह है। इसी संग्रह में उनकी प्रसिद्ध कविता ‘परिवर्तन’ सम्मिलित है। ‘तारापथ’ उनकी प्रतिनिधि कविताओं का संकलन है। उन्होंने ज्योत्स्ना नामक एक रूपक की रचना भी की है।
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रचनाएँ
कविताएं
वीणा (1919) | ग्रंथि (1920) | पल्लव (1926) |
गुंजन (1932) | युगांत (1937) | युगवाणी (1938) |
ग्राम्या (1940) | स्वर्णकिरण (1947) | स्वर्णधूलि (1947) |
उत्तरा (1949) | युगपथ (1949) | चिदंबरा (1958) |
कला और बूढ़ा चाँद (1959)
लोकायतन (1964)
गीतहंस (1969)।
कहानियाँ
- पाँच कहानियाँ (1938)
उपन्यास
- हार (1960),
आत्मकथात्मक संस्मरण
- साठ वर्ष : एक रेखांकन (1963)।
चिदंबरा का प्रकाशन 1958 में हुआ। वही युगवाणी (1937-38) से अतिमा (1948) तक कवि की 10 कृतियों से चुनी हुई इसमे 196 कविताएं संकलित हैं।
एक लंबी आत्मकथात्मक कविता आत्मिका भी इसमेंशामिल है, जो वाणी (1957) से ली गई है। चिदंबरा पंत की काव्य चेतना के द्वितीय उत्थान की परिचायक है।
भाषा-शैली – सुमित्रानंदन पंत की जीवनी
कवि पन्त का भाषा पर असाधारण अधिकार है।
भाव और विषय के अनुकूल मार्मिक शब्दावली उनकी लेखनी से सहज प्रवाहित होती है।
यद्यपि पन्त की भाषा का एक विशिष्ट स्तर है फिर भी वह विषयानुसार परिवर्तित होती है।
पन्तजी के काव्य में एकाधिक शैलियों का प्रयोग हुआ है।
प्रकृति-चित्रण में भावात्मक, आलंकारिक तथा दृश्य विधायनी शैली का प्रयोग हुआ है।
विचार-प्रधान तथा दार्शनिक विषयों की शैली विचारात्मक एवं विश्लेषणात्मक भी हो गई है।
इसके अतिरिक्त प्रतीक-शैली का प्रयोग भी हुआ है।
सजीव बिम्ब-विधान तथा ध्वन्यात्मकता भी आपकी रचना-शैली की विशेषताएँ हैं।
पुरस्कार
- सुमित्रानंदन पंत को 1961 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।
- 1968 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
- कला और बूढ़ा चाँद के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार,से नवाजा गया।
- लोकायतन पर ‘सोवियत लैंड नेहरु पुरस्कार’
- ‘चिदंबरा’ पर उन्हें ‘भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार’ प्राप्त हुआ।
- सुमित्रानंदन पंत के नाम पर कौसानी में उनके पुराने घर को, जिसमें वह बचपन में रहा करते थे, ‘सुमित्रानंदन पंत वीथिका’ के नाम से एक संग्रहालय के रूप में परिवर्तित कर दिया गया है। इसमें उनके व्यक्तिगत प्रयोग की वस्तुओं जैसे कपड़ों, कविताओं की मूल पांडुलिपियों, छायाचित्रों, पत्रों और पुरस्कारों को प्रदर्शित किया गया है। इसमें एक पुस्तकालय भी है, जिसमें उनकी व्यक्तिगत तथा उनसे संबंधित पुस्तकों का संग्रह है।
मृत्यु – सुमित्रानंदन पंत की जीवनी
सुमित्रानंदन पंत की 77 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु 28 दिसम्बर, 1977 को इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश में हुई।
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