विनोबा भावे की जीवनी – Vinoba Bhave Biography Hindi

आज इस आर्टिकल में हम आपको विनोबा भावे की जीवनी – Vinoba Bhave Biography Hindi के बारे में बताएगे।

विनोबा भावे की जीवनी – Vinoba Bhave Biography Hindi

विनोबा भावे की जीवनी
विनोबा भावे की जीवनी

( English – Vinoba Bhave) विनोबा भावे  भारत के स्वतंत्रता संग्राम
सेनानी, सामाजिक कार्यकर्ता और प्रसिद्ध गांधीवादी नेता थे।

वे ‘भूदान यज्ञ’ नामक आन्दोलन के संस्थापक थे।

उन्हे संस्कृत, कन्नड, उर्दू और मराठी समेत करीब 7 भाषाओं का ज्ञान था।

भारत सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से 1983
में मरणोपरांत सम्मानित किया।

संक्षिप्त विवरण

 

नाम  विनोबा भावे
पूरा नाम विनायक नरहरि भावे
जन्म 11 सितंबर 1895
जन्म स्थान  गाहोदे, गुजरात, भारत
पिता का नाम नरहरी शम्भू राव
माता का नाम रुक्मिणी देवी
राष्ट्रीयता भारतीय
धर्म
हिन्दू
जाति
 ब्राह्मण

जन्म

Vinoba Bhave का जन्म 11 सितंबर 1895 को गाहोदे, गुजरात, भारत में हुआ था।

विनोबा भावे का  पूरा नाम विनायक नरहरि भावे था।

उनके पिता  नरहरी शम्भू राव जोकि एक बहुत ही अच्छे बुनकर थे तथा उनकी माता का नाम रुक्मिणी देवी था और वे एक धार्मिक महिला थी।

जेल यात्रा – विनोबा भावे की जीवनी

गाँधी जी के सानिध्‍य और निर्देशन में विनोबा के लिए ब्रिटिश जेल एक तीर्थधाम बन गई।

1921 से लेकर 1942 तक अनेक बार जेल यात्राएं हुई।

1922 में नागपुर का झंडा सत्‍याग्रह किया। ब्रिटिश हुकूमत ने सीआरपीसी की धारा 109 के तहत विनोबा को गिरफ़्तार किया।

इस धारा के तहत आवारा गुंडों को गिरफ्तार किया जाता है।

नागपुर जेल में विनोबा को पत्थर तोड़ने का काम दिया गया। कुछ महीनों के पश्‍चात अकोला जेल भेजा गया।

विनोबा का तो मानो तपोयज्ञ प्रारम्‍भ हो गया। 1925 में हरिजन सत्‍याग्रह के दौरान जेल यात्रा हुई।

1930 में गाँधी के नेतृत्व में राष्‍ट्रीय कांग्रेस ने नमक सत्याग्रह को अंजाम दिया।

गाँधी जी और विनोबा भावे

12 मार्च 1930 को गाँधी जी ने दांडी मार्च शुरू किया। विनोबा फिर से जेल पंहुच गए। इस बार उन्‍हें धुलिया जेल रखा गया। राजगोपालाचार्य जिन्‍हें राजाजी भी कहा जाता था, उन्‍होंने विनोबा के विषय में ‘यंग इंडिया’ में लिखा था कि विनोबा को देखिए देवदूत जैसी पवित्रता है उसमें। आत्‍मविद्वता, तत्‍वज्ञान और धर्म के उच्‍च शिखरों पर विराजमान है वह।

उसकी आत्मा ने इतनी विनम्रता ग्रहण कर ली है कि कोई ब्रिटिश अधिकारी यदि पहचानता नहीं तो उसे विनोबा की महानता का अंदाजा नहीं लगा सकता। जेल की किसी भी श्रेणी में उसे रख दिया जाए वह जेल में अपने साथियों के साथ कठोर श्रम करता रहता है। अनुमान भी नहीं होता कि य‍ह मानव जेल में चुपचाप कितनी यातनाएं सहन कर रहा है।

11 अक्टूबर 1940 को गाँधी द्वारा व्‍यक्तिगत सत्‍याग्रह के प्रथम सत्‍याग्रही के तौर पर विनोबा को चुना गया। प्रसिद्धि की चाहत से दूर विनोबा इस सत्‍याग्रह के कारण बेहद मशहूर हो गए। उनको गांव गांव में युद्ध विरोधी तक़रीरें करते हुए आगे बढ़ते चले जाना था। ब्रिटिश सरकार द्वारा 21 अक्टूबर को विनोबा को गिरफ़्तार किया गया। 9 अगस्त 1942  को वह गाँधी और कांग्रेस के अन्‍य बड़े नेताओं के साथ गिरफ़्तार किये गये। इस बार उनको पहले नागपुर जेल में फिर वेलूर जेल में रखा।

भूदान आन्दोलन

Vinoba Bhave का ‘भूदान आंदोलन’ का विचार 1951 में जन्मा। जब वह आन्ध्र प्रदेश के गाँवों में भ्रमण कर रहे थे, भूमिहीन अस्पृश्य लोगों या हरिजनों के एक समूह के लिए ज़मीन मुहैया कराने की अपील के जवाब में एक ज़मींदार ने उन्हें एक एकड़ ज़मीन देने का प्रस्ताव किया।

इसके बाद वह गाँव-गाँव घूमकर भूमिहीन लोगों के लिए भूमि का दान करने की अपील करने लगे और उन्होंने इस दान को गांधीजी के अहिंसा के सिद्धान्त से संबंधित कार्य बताया। भावे के अनुसार, यह भूमि सुधार कार्यक्रम हृदय परिवर्तन के तहत होना चाहिए न कि इस ज़मीन के बँटवारे से बड़े स्तर पर होने वाली कृषि के तार्किक कार्यक्रमों में अवरोध आएगा, लेकिन भावे ने घोषणा की कि वह हृदय के बँटवारे की तुलना में ज़मीन के बँटवारे को ज़्यादा पसंद करते हैं।

हालांकि बाद में उन्होंने लोगों को ‘ग्रामदान’ के लिए प्रोत्साहित किया, जिसमें ग्रामीण लोग अपनी भूमि को एक साथ मिलाने के बाद उसे सहकारी प्रणाली के अंतर्गत पुनर्गठित करते। आपके भूदान आन्दोलन से प्रेरित होकर हरदोई जनपद के सर्वोदय आश्रम टडियांवा द्वारा उत्तर प्रदेश के 25 जनपदों में श्री रमेश भाई के नेतृत्व में उसर भूमि सुधार कार्यक्रम सफलता पूर्वक चलाया गया।

कृतियाँ

अष्टादशी (सार्थ) ईशावास्यवृत्ति उपनिषदांचा अभ्यास गीताई
गीताई-चिंतनिका गीता प्रवचने गुरुबोध सार (सार्थ) जीवनदृष्टी
भागवत धर्म-सार मधुकर मनुशासनम्‌ (निवडक मनुस्मृती – मराठी) लोकनीती
विचार पोथी साम्यसूत्र वृत्ति साम्यसूत्रे स्थितप्रज्ञ-दर्शन

चरित्रग्रन्थ – विनोबा भावे की जीवनी

  • आमचे विनोबा (राम शेवाळकर आणि इतर)
  • गांधी, विनोबा आणि जयप्रकाश (मिलिंद बोकील)
  • दर्शन विनोबांचे (राम शेवाळकर)
  • महर्षी विनोवा (राम शेवाळकर)
  • महाराष्‍ट्राचे शिल्‍पकार विनोबा भावे (लेखक : किसन चोपडे.) (महाराष्ट्र सरकारचे प्रकाशन)
  • विनोबांचे धर्मसंकीर्तन ((राम शेवाळकर आणि इतर))
  • विनोबासारस्वत ((राम शेवाळकर आणि इतर)
  • साम्ययोगी विनोबा (राम शेवाळकर)

विचार

  • मनुष्य जितना ज्ञान में घुल गया हो उतना ही कर्म के रंग में रंग जाता है।
  •  जिस राष्ट्र में चरित्रशीलता नहीं है उसमें कोई योजना काम नहीं कर सकती।
  •  प्रतिभा का अर्थ है बुद्धि में नई कोपलें फूटते रहना। नई कल्पना, नया उत्साह, नई खोज और नई स्फूर्ति प्रतिभा के लक्षण हैं।
  •  जबतक कष्ट सहने की तैयारी नहीं होती तब तक लाभ दिखाई नहीं देता। लाभ की इमारत कष्ट की धूप में ही बनती है।
  • हिन्दुस्तान का आदमी बैल तो पाना चाहता है लेकिन गाय की सेवा करना नहीं चाहता। वह उसे धार्मिक दृष्टि से पूजन का स्वांग रचता है लेकिन दूध के लिये तो भैंस की ही कद्र करता है। हिन्दुस्तान के लोग चाहते हैं कि उनकी माता तो रहे भैंस और पिता हो बैल। योजना तो ठीक है लेकिन वह भगवान को मंजूर नहीं है।
  •  सिर्फ धन कम रहने से कोई गरीब नहीं होता, यदि कोई व्‍यक्ति धनवान है और इसकी इच्‍छाएं ढेरों हैं तो वही सबसे गरीब है।
  • हिन्दुस्तान की एकता के लिये हिन्दी भाषा जितना काम देगी, उससे बहुत अधिक काम देवनागरी लिपि दे सकती है।
  • तगड़े और स्वस्थ व्यक्ति को भीख देना, दान करना अन्याय है। कर्महीन मनुष्य भिक्षा के दान का अधिकारी नहीं हो सकता।
  • संघर्ष और उथल पुथल के बिना जीवन बिल्कुल नीरस बन कर रह जाता है। इसलिए जीवन में आने वाली विषमताओं को सह लेना ही समझदारी है।
  • भविष्य में स्त्रियों के हाथ में समाज का अंकुश आने वाला है। उसके लिए स्त्रियों को तैयार होना पड़ेगा। स्त्रियों का उद्धार तभी
    होगा, जब स्त्रियाँ जागेंगी और स्त्रियों में शंकराचार्य जैसी कोई निष्ठावान स्त्री होगी।
  • अभिमान कई तरह के होते हैं, पर मुझे अभिमान नहीं है, ऐसा भास होने जैसा भयानक अभिमान दूसरा नहीं है.

पुरस्कार – विनोबा भावे की जीवनी

  • विनोबा को 1958 में प्रथम रेमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
  • भारत सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से 1983 में मरणोपरांत सम्मानित किया।

मृत्यु

Vinoba Bhave की मृत्यु 15 नवंबर 1982 को वर्धा, महाराष्ट्र में हुआ था।

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